एम्स
भोपाल की एंटीबायोटिकग्राम रिपोर्ट में यह साफ हुआ है। क्लोरेम्फेनिककूल का उपयोग बंद किया तो प्रभावी क्षमता 63% पाई गई। एम्स हर 6 माह में यह रिपोर्ट जारी कर रहा है, ताकि क्लीनिकल प्रैक्टिसनर ऐसी दवाइयों का इस्तेमाल न करें। भविष्य में गंभीर मर्ज के इलाज में एंटीबायोटिक धोखा न दे और जान बचाई जा सके।
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● पहली श्रेणी में ऐसे ड्रग हैं, जिनका असर कम हो गया।
● दूसरी श्रेणी में वे दवाइयां, जिनका असर कम हो रहा है। ● तीसरी रिजर्व श्रेणी, जब कोई दवा काम नहीं करती, तब इससे जान बचाई जाती है।
एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल कब करना चाहिए ?
एंटीबायोटिक दवाओं का बेअसर होना दुनिया भर के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। बीते दिनों पहले एक इंटरव्यू में दिल्ली एम्स के पूर्व निदेशक ने कहा था कि ‘यह हमारे देश के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. किसी एक को दोष देना ठीक बात नहीं है। इसमें डॉक्टर, केमिस्ट, पब्लिक और सरकार सब दोषी है। हम नए एंटीबायोटिक्स की उत्पत्ति नहीं कर रहे हैं और दूसरी तरफ धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां तक कि एलोपैथ के साथ-साथ अब आयुर्वेद वाले भी इसका खूब इस्तेमाल करने लगे हैं। यूएई, अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में एंटीबायोटिक्स दवा बिना डॉक्टर के पर्चे पर आप नहीं खरीद सकते हैं लेकिन, यहां आपको हर जगह मिल जाएगा।’