उन्होंने केंद्र व राज्य सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि अन्य श्रेणी के कर्मचारियों से बढ़ कर
काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को सरकार शासकीय कर्मचारी मानने के लिए तैयार नहीं है, बल्कि जीने लायक वेतन देने के लिए भी तैयार नहीं है।
महासचिव किशोरी वर्मा ने कहा कि ३० से ४० वर्षों की सेवा देने के बाद जब ६० की उम्र में वह आती है तो सरकार उन्हें बिना पेंशन व अन्य किसी लाभ दिए असम्मानजनक तरीके से आंगनबाड़ी केंद्रों से बाहर कर देती है, वहीं कई शासकीय विभागों में सेवा निवृत्ति की आयु ६५ वर्ष है। उन्होंने कहा कि २८ फरवरी को मप्र विधानसभा के बजट सत्र में उनकी मांगों को पर विचार नहीं किया गया तो यह आंदोलन और उग्र हो जाएगा।
इधर, संविदा स्वास्थ्यकर्मियों की हड़ताल, टीबी मरीज हो रहे परेशान
प्रदेशभर में चल रही संविदा स्वास्थ्य कर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल से अब मरीज परेशान होनने लगे हैं। हड़ताल का सबसे ज्यादा असर एचआईवी एआरटी सेंटर और टीबी के लिए डॉट सेंटर पर हो रहा है। शहर में एक दर्जन से ज्यादा डॉट सेंटर हैं, लेकिन कर्मचारी नहीं होने के कारण मरीजों को दवाएं नहीं मिल रही हैं। मंगलवार को भी एेसा ही एक मामला सामने आया। मास्टर लाल सिंह अस्पताल में टीबी मरीज सरिता (परिवर्तित नाम) वहां डॉट सेंटर पर ताला लटका मिला। उन्होंने जानकारी जुटाई तो पता चला कि डॉट्स कर्मचारी हड़ताल पर हैं। हड़ताल का असर सिर्फ दवा वितरण पर नहीं हुआ है। फार्मासिस्ट के साथ-साथ लैब टेक्नीशियन भी हड़ताल पर होने के कारण ज्यादातर अस्पतालों में जांच प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। शहर के कई अस्पतालों टेक्नीशियन की हड़ताल के चलते टीबी के संदिग्ध मरीजों की जांच नहीं हो पा रही हैं। इससे उनके उपचार में देर हो रही है।
समय पर दवा ना मिले तो हो सकता है गंभीर असर जिला टीबी अस्पताल के अधीक्षक डॉ. मनोज वर्मा के मुताबिक दवा लेने में एक या दो दिन अंतर हो जाए तो कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन एक सप्ताह से ज्यादा गेप होने लगे तो टीबी बैक्टीरिया सक्रिय होने लगते हैं। इससे मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता दोबारा कम होने लगती है। इसलिए कोशिश करना चाहिए कि दवा के सेवन में ज्यादा दिनों का गैप न आए।