कुछ समय पहले एम्स दिल्ली और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने एंटीबायोटिक के असर पर एक शोध किया था। शोध के मुताबिक बेतहाशा उपयोग से एंटीबायोटिक का असर या तो खत्म हो चुका है या कम हो गया है। हालांकि राहत की बात यह है कि पुराने एंटीबायोटिक जिनका उपयोग कम हो रहा है , वे फि र से प्रभावी हो गए हैं।
एनएचएम के संयुक्त संचालक डॉ.़ पंकज शुक्ला बताते हैं कि रिसर्च से प्राप्त आंकड़े भविष्य के लिए खतरे की घंटी हैं, क्योंकि एंटीबायोटिक के गैरजरूरी और बेतहाशा इस्तेमाल से इनकी बैक्टिरिया के प्रति सेंसिटिविटी घट रही है। इससे मरीज को ठीक होने में भी ज्यादा समय लग रहा है, वहीं इन दवाओं का साइड इफेक्ट भी देखने को मिल रहा है।
– टीबी की दवाओं का लीवर पर होता है प्रभाव। इसके अलावा कान और आंख भी प्रभावित हो जाता है। इसलिए टीबी की दवा सेवन करते समय मरीज को सलाह दी जाती है कि वह लीवर की नियमित जांच कराते रहे।
– टायफ ायड की दवा के दुष्प्रभाव से बोन मैरो डिप्रेशन हो जाता है। बोन मैरो में आरबीसी और डब्लूबीसी खराब होने लगता है जिससे मरीज में खून की कमी हो जाती है।
– बुखार और डायरिया की दवाओं का साइड इफेक्ट होता है कि दवा से शरीर के अच्छे बैक्टीरिया भी मर जाते हैं जिससे मरीज में रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है।
– पेट से संबंधित बीमारियों में हाई डोज इस्तेमाल होने वाली से किडनी और लीवर खराब होने की आशंका हो जाती है।
– रिसर्च में अस्पताल में भर्ती मरीजों पर एंटीबायोटिक्स के असर का अध्ययन किया गया।
– सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली एंटीबायोटिक जैसे एंपिसिलीन, एमॉक्सीसिलीन, सिफ जोलिन, सिफेप्राइम, सिफ्रि एक्सोन आदि की प्रभावशीलता 50 प्रतिशत के नीचे पहुंच गई।
– वर्षों पहले अप्रभावी हुआ क्लोरेम्फेनिक ल की प्रभावशीलता 63 फ ीसदी तक पाई गई। भर्ती मरीजों में सर्वाधिक प्रभावी कोलिस्टिन पाया गया।
1. कोलिस्टिन – 89
2. इंपीनेम – 70
3. पिपरेसिलीन – 64
4. क्लोरेम्फेनीकूल – 63
5. जेंटामाइसिन – 60
6. एजट्रियोनम – 59
7. सेफ्टाजिडाइम – 52
8. लीवोफ्लोक्सेसिन – 52
9. डोरीपेनम – 48
10. सिफ्रि एक्सोन – 46
11. मीरोपेनम – 46
12. कोट्राइमोक्सेजोल – 42
13. सिफेपाइम – 40
14. सिफेजोलिन – 26
15. एमॉक्सीसिलीन – 17
16. एंपिसिलीन – 12