दरअसल पद्मश्री प्रो. अजय कुमार रे भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी) में नव स्थापित आईईईई छात्र शाखा के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए थे। पद्मश्री प्रो. अजय कुमार रे यहां मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस कार्यक्रम में डॉ. अशुतोष कुमार सिंह, निदेशक आईआईआईटी भोपाल, डॉ. अमित ओझा, सचिव आईईईई एमपी सेक्शन और डॉ. गौरव कुमार भारती आदि उपस्थित रहे।
पत्रिका से बातचीत में उन्होंने कहा कि हर चीज के दो पहलू होते हैं, अच्छा और बुरा…। यही हाल एआई का है, क्योंकि जबसे एआई आया है, सबसे ज्यादा काम स्टूडेंट्स का आसान हो गया है। वे पेपर, थीसिस और प्रोजेक्ट बनाने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के टूल चैट जीपीटी का तेजी से इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे उनका मानसिक स्तर घटने के चांसेज बढ़ गए हैं। दिमाग काम करना बंद करता जा रहा है। इसके लिए गवर्नमेंट को कुछ रूल्स और रेगुलेशन बनाने होंगे।
बढ़ गया जॉब जाने का खतरा
अजय कुमार ने कहा कि जिस फील्ड में एआई मशीन लर्निंग का सबसे ज्यादा दखल होगा, वहां जॉब जाने का खतरा ज्यादा होगा, लेकिन ये भी है कि अगर 10 जॉब जाएंगे तो 2 जॉब जनरेट होंगे, क्योंकि किसी भी मशीन को चलाने के लिए दिमाग और नॉलेज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इसके अलावा जब से एआई आया है, तभी से गलत और सही चीजों का पता कर सकें, ऐसे टूल्स जनरेट किए जा रहे हैं। इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में सर्टिफिकेट कोर्स, डिप्लोमा कोर्स भी शुरू कर दिए गए हैं।
अ जय कुमार ने बताया कि हेल्थकेयर सेक्टर में एआई का खूब इस्तेमाल हो रहा है। कैंसर जैसी पुरानी बीमारियों से लेकर रेडियोलॉजी तक सही नतीजे पता करने के लिए एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो इन बीमारियों से पीडि़त मरीजों की देखभाल करता है और साथ ही उनका सटीक इलाज ढूंढने में मदद कर रहा है। पाथ एआई इसका एक अच्छा उदाहरण है। इसकी मदद से कैंसर डायग्नोसिस का सटीक डेटा मिलता है और इलाज में मदद मिलती है। वहीं एआई-माइक्रोस्कोप की मदद से जानलेवा रक्त रोगों का भी सटीक डेटा मिल सकता है।