कहलाता है रावण का गांव
गांव के चौराहे पर रावण की स्थाई प्रतिमा होने के कारण आसपास के गांव वाले रोपा को ‘रावण का गांव’ भी कहते हैं। सरपंच सत्यनारायण धाकड़ ने बताया कि रावण वध की परंपरा किसने शुरू की। इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन पूर्वजों के समय से गांव में
दशहरे पर्व पर परम्परा चली आ रही है। पहले गांव के चौराहे पर रावण की मिट्टी की प्रतिमा बनी थी। इसे कई सालों पहले सीमेंट की बनवा दी गई।
एक दिन पहले लंका दहन
रावण वध से एक दिन पहले लंका दहन होता है। गांव के भगवान चारभुजा नाथ मंदिर से ठाकुर जी की शोभायात्रा निकाली जाती है। साथ ही हनुमान बने बाल कलाकार रावण चौक पहुंचते हैं, यहां लंका दहन होता है। रावण विद्वान तथा शिव भक्त था। अंतिम समय भगवान श्रीराम के कहने पर लक्ष्मण ने रावण के चरणों के पास खड़े होकर ज्ञान प्राप्त किया था। ग्रामीणों का मानना है कि ऐसे में उसको जलाया नहीं जा सकता। बोली से चुने जाते राम-लक्ष्मण
राम-लक्ष्मण बनने के लिए बोली लगती है। जो अधिक बोली लगाएगा वह राम-लक्ष्मण बनता है। भगवान चारभुजा नाथ
मंदिर में रखे हुए भाले से रावण का वध करते हैं। वध करने के लिए रावण की स्थाई प्रतिमा के पेट पर मटकी बांधी जाती है। राम भाले से मटकी फोड़कर वध करते है। बोली से एकत्र राशि धार्मिक आयोजन में खर्च की जाती है।