हुकमीचंद रुलनिया का जन्म अत्यंत साधारण परिवार में हुआ था। हालाँकि, उनका परिवार शिक्षा के महत्व और उसके प्रभाव से पूरी तरह परिचित था। पिता की छोटी सी चाय की दुकान थी। जिससे वह परिवार का भरण-पोषण कर सके। घर की परिस्थितियों को देखते हुए मां भी दूसरों के खेतों में मजदूरी करके मदद करने की कोशिश करतीं। हर मां-बाप की तरह उनका भी सपना था कि उनका बेटा पढ़-लिखकर काबिल बने। जिस पर हुक्मीचंद खरे उतरे और अपने परिवार को गौरवान्वित किया। आज हुक्मीचंद के मां और पिता अपने अतीत को याद कर खुशी के आंसू रो पड़ते हैं।
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मां शांति देवी का कहना है कि हमने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए जो कष्ट सहे उसका फल भगवान ने हमें दिया है। शांति देवी बताती हैं कि उनके 5 बेटे-बेटियां हैं। हुक्मीचंद भाइयों में सबसे छोटे हैं। बड़े भाई धर्मराज रुलनिया भी सरकारी नौकरी में हैं। उन्होंने कहा कि अब जब उनके बच्चे ने कुछ हासिल किया है, तो उन्हें अब मजदूरी के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा, हालांकि वह अभी भी अपने खेतों में काम करती हैं। कई बार गांव वाले मजाक में उनसे कहते हैं कि अब वह एसडीएम की मां हैं…उन्हें खेतों में मजदूरी करना बंद कर देना चाहिए। मेरा उत्तर यह है कि यह मेरा कर्तव्य है। मैं इसे कैसे छोड़ सकता हूँ? इसी के दम पर बेटे कामयाब हुए हैं।
मूलरूप से राजस्थान में सीकर जिले खंडेला के पास छोटे से गांव दूल्हेपुरा के रहने वाले, हुक्मीचंद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल से की। 10वीं के बाद वह पढ़ाई के लिए सीकर चले गए। फिर कुरूक्षेत्र से बीटेक की डिग्री ली। हालांकि, इस बीच वह तैयारी भी करते रहे. हुक्मीचंद ने अपना पहला प्रयास वर्ष 2016 में राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षा में किया, जिसमें उन्हें 700 से अधिक रैंक प्राप्त हुई। साल 2018 में दूसरे प्रयास में 18वीं रैंक हासिल कर वह एसडीएम बने। वर्तमान में बतौर उपखंड अधिकारी पहली पोस्टिंग है।