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भीलवाड़ा

इस ‘लेडी सिंघम’ ने लगाई थी आसाराम को हथकड़ी, जानिए पूरी कहानी पुलिस अफसर चंचल मिश्रा की जुबानी

आरपीएस चंचल मिश्रा का कहना है कि देशभर में बेटियों से दुष्कर्म मामलों की जांच सही तरीके से हो तो कोई भी अपराधी बच नहीं सकता है।

भीलवाड़ाApr 25, 2018 / 09:18 pm

Santosh Trivedi

Chanchal Mishra asaram
भीलवाड़ा। देशभर में बेटियों से दुष्कर्म मामलों की जांच सही तरीके से हो तो कोई भी अपराधी बच नहीं सकता है, चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो। मैंने खुद दुष्कर्मी आसाराम को हथकड़ी लगाई थी। आरपीएस की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद जोधपुर में पहली पोस्टिंग थी। इतना हाई प्रोफाइल केस देखकर एक बार थोड़ी घबराई, लेकिन अनुसंधान का जिम्मा मिलने के बाद उन बेटियों का चेहरा सामने था, जो उनकी दरिंदगी का शिकार बनी। मैं उन बेटियों को न्याय दिलाना चाहती थी। तब जांच के दौरान ठोस गवाह और सबूत जुटाकर न्यायालय में पेश किए, जिससे दुष्कर्मी को कड़ी सजा मिली। आसाराम की गिरफ्तारी के बाद ही से उनके समर्थकों से लगातार धमकियां मिली, जिस पर मुझे विशेष सुरक्षा मुहैया कराई।
पहले झिझकी, फिर संभली, सेल्यूट कर लिया जिम्मा
मुझे याद है कि जोधपुर में आसाराम के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद उच्चाधिकारियों ने अनुसंधान मुझे सौंपने की बात कहीं तो पहली पोस्टिंग होने और देश का बड़ा मामला होने से एक बार सोच में पड़ गई। फिर जो जिम्मेदारी दी जा रही थी उसका निर्वाहन करने के लिए अफसरों ने मनोबल बढ़ाया तो बस अफसरों को सेल्यूट किया और मजबूत इरादों के साथ अनुसंधान के लिए चेम्बर से निकल गई। मैंने पीडि़ता को भी सम्बल दिया कि वह पीछे नहीं हटे। आसाराम जैसे अपराधियों को सजा दिलवाएं। चाहे उन्हें कितनी धमकियां और मुश्किलों का सामना क्यों ना करना पड़े।
गुजरात में समर्थकों ने घेरा, हिम्मत नहीं हारी, गिरफ्तार कर लाई
आसाराम को गिरफ्तार करने इंदौर गई। वहां उसके आश्रम में हजारों समर्थकों की भीड़ देख दंग रह गई। भीड़ के आगे आसाराम को गिरफ्तार करना चुनौती था। मेरे साथ गिनती के कुछ पुलिसकर्मी थे। आश्रम में दीवार फांदकर निडरता के साथ अंदर घुसे। पहले आसाराम के आश्रम में होने से मना कर दिया। जब उसके पुत्र से दबंगता से बात की तो आखिर उन्हें झुकना पड़ा। वे रात को आसाराम को हिरासत में लेकर आश्रम के पीछे के रास्ते से रवाना हुए।
दिन में कानून व्यवस्था संभालते, रात में अनुसंधान पूरा करते
गिरफ्तारी के विरोध में आसाराम के हजारों समर्थकों ने जोधपुर में डेरा डाल दिया था। आगजनी और तोडफ़ोड़ होने लगा। कानून व्यवस्था बिगड़ गई। इसके चलते दिन में कानून व्यवस्था संभालते और रात में अनुसंधान करती। कई रात सोई ही नहीं। आखिर आसाराम को जेल भेजा। उसके बाद 90 दिन में चालान पेश करना था। 58 गवाहों के बयान कलमबद्ध किए। पांच राज्यों की दौड़ लगा दस्तावेज जुटाए। दिन रात अनुसंधान में जुटे रहे। चालान पेश करने में तीन उपनिरीक्षक, दो सहायक उपनिरीक्षक के साथ कुछ अन्य लोग साथ थे। सुपरविजन अफसर आईपीएस अजय लाम्बा का पूरा सहयोग मिला।
मजबूत पक्ष रखा, तबादला हो गया, जिरह में दिनभर लग जाता
चालान पेश करने के बाद मेरा केकड़ी तबादला हो गया। अदालत में ट्रायल शुरू हुई तो सात दिन में मेरे बयान पूरे हो गए। अब जिरह की बारी थी। आसाराम के पक्ष में देश के जाने माने वरिष्ठ वकील सामने थे। रामजेठमलानी समेत कई नामी वकीलों ने जिरह की। लेकिन न डरी, ना झिझकी। बेबाकी से हर सवाल का जवाब दिया। कई बार धमकियां मिली। लेकिन इसका बयानों पर असर नहीं आने दिया। डर था तो बस यह कि थोड़ी से चूक से मुल्जिम को बचाव का मौका ना मिल जाए।
सजा सुन खुशी का ठिकाना नहीं रहा, मेरी मेहनत सफल हुई

लिहाजा हर बार तैयारी के साथ जिरह के लिए गई। एक साल में 204 पेज की जिरह हुई। उसके बाद सरकार ने धमकियों को देखते मेरी सुरक्षा दुगनी कर दी। जोधपुर जेल में बुधवार दोपहर जैसे ही न्यायाधीश ने आसाराम और उसके सहयोगियों को सजा सुनाई तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अनुसंधान में की मेहनत सफल रही। यह फैसला आधी दुनिया के लिए नींव का पत्थर साबित होगा। अत्याचार होने पर महिलाएं और युवतियां चुप ना रहे। ना ही डरे। उसका डटकर मुकाबला करें। न्याय जरूर मिलेगा।
(चंचल मिश्रा आसाराम केस के समय जोधपुर में पदस्थापित थी और मामले में अनुसंधान अधिकारी रही हैं, फिलहाल भीलवाड़ा जिले के मांडल में उपाधीक्षक हैं)

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