मुझे याद है कि जोधपुर में आसाराम के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद उच्चाधिकारियों ने अनुसंधान मुझे सौंपने की बात कहीं तो पहली पोस्टिंग होने और देश का बड़ा मामला होने से एक बार सोच में पड़ गई। फिर जो जिम्मेदारी दी जा रही थी उसका निर्वाहन करने के लिए अफसरों ने मनोबल बढ़ाया तो बस अफसरों को सेल्यूट किया और मजबूत इरादों के साथ अनुसंधान के लिए चेम्बर से निकल गई। मैंने पीडि़ता को भी सम्बल दिया कि वह पीछे नहीं हटे। आसाराम जैसे अपराधियों को सजा दिलवाएं। चाहे उन्हें कितनी धमकियां और मुश्किलों का सामना क्यों ना करना पड़े।
आसाराम को गिरफ्तार करने इंदौर गई। वहां उसके आश्रम में हजारों समर्थकों की भीड़ देख दंग रह गई। भीड़ के आगे आसाराम को गिरफ्तार करना चुनौती था। मेरे साथ गिनती के कुछ पुलिसकर्मी थे। आश्रम में दीवार फांदकर निडरता के साथ अंदर घुसे। पहले आसाराम के आश्रम में होने से मना कर दिया। जब उसके पुत्र से दबंगता से बात की तो आखिर उन्हें झुकना पड़ा। वे रात को आसाराम को हिरासत में लेकर आश्रम के पीछे के रास्ते से रवाना हुए।
गिरफ्तारी के विरोध में आसाराम के हजारों समर्थकों ने जोधपुर में डेरा डाल दिया था। आगजनी और तोडफ़ोड़ होने लगा। कानून व्यवस्था बिगड़ गई। इसके चलते दिन में कानून व्यवस्था संभालते और रात में अनुसंधान करती। कई रात सोई ही नहीं। आखिर आसाराम को जेल भेजा। उसके बाद 90 दिन में चालान पेश करना था। 58 गवाहों के बयान कलमबद्ध किए। पांच राज्यों की दौड़ लगा दस्तावेज जुटाए। दिन रात अनुसंधान में जुटे रहे। चालान पेश करने में तीन उपनिरीक्षक, दो सहायक उपनिरीक्षक के साथ कुछ अन्य लोग साथ थे। सुपरविजन अफसर आईपीएस अजय लाम्बा का पूरा सहयोग मिला।
चालान पेश करने के बाद मेरा केकड़ी तबादला हो गया। अदालत में ट्रायल शुरू हुई तो सात दिन में मेरे बयान पूरे हो गए। अब जिरह की बारी थी। आसाराम के पक्ष में देश के जाने माने वरिष्ठ वकील सामने थे। रामजेठमलानी समेत कई नामी वकीलों ने जिरह की। लेकिन न डरी, ना झिझकी। बेबाकी से हर सवाल का जवाब दिया। कई बार धमकियां मिली। लेकिन इसका बयानों पर असर नहीं आने दिया। डर था तो बस यह कि थोड़ी से चूक से मुल्जिम को बचाव का मौका ना मिल जाए।