Sports News: सरकारी अनुदान के बिना खेल संघों ने तैयार किए खिलाड़ी, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कर रहे नाम रौशन…
Sports News: प्रतियोगिताएं कराने जितना फंड मिलता उतना खिलाड़ियों को भेजने में खर्चा हो जाता है, ऐसे में संघों ने खुद के संसाधनों का उपयोग करना ही बेहतर समझा और सरकारी फंड से तौबा कर ली।
Bhilai News: एक तरफ सरकार खेल संघों को लाखों रुपए का अनुदान हर साल मुहैया करा रही है, जबकि जिले में ही सात ऐसे संघ भी हैं, जिन्होंने 10 साल से अनुदान का एक रुपया तक नहीं लिया। कुश्ती, बॉक्सिंग और तैराकी जैसे ओलंपिक खेलों के इन संघों ने एक दशक से खेल एवं युवा कल्याण विभाग से अनुदान का रिश्ता तोड़ दिया है। फंड देने में लेटलतीफी और ऊंट के मुंह में जीरा जैसा अनुदान इन संघों को रास नहीं आया।
यह भी पढ़ें: सात खेल संघों ने सरकारी अनुदान से किया तौबा, COA ने खोला खेल विभाग के खिलाफ मोर्चा, पूछा कैसे खेलें इंडिया ? बावजूद इसके खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में दुर्ग जिले का नाम रौशन किया। दुर्ग जिले में 7 खेल संघों ने संघ नवीनीकरण की प्रक्रिया पूरी ही नहीं की। शुरुआत में प्रतियोगिताएं कराने जितना फंड मिलता उतना खिलाड़ियों को भेजने में खर्चा हो जाता है, ऐसे में संघों ने खुद के संसाधनों का उपयोग करना ही बेहतर समझा और सरकारी फंड से तौबा कर ली। आज इन खेल संघ के खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में दमखम दिखा रहे हैं। वहीं इनमें से कुछ खेल संघ ऐसे भी हैं, जो अब गुमनाम हो चुके हैं। इनके खेल और खिलाड़ी दोनों ही नदारद हैं।
नहीं दी अनुदान की बकाया राशि
बीते कई वर्षों में हुई प्रतियोगिता व प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने के बाद भी अनुदान की बकाया लाखों रुपए की राशि विभाग द्वारा स्वीकृति न करने के कारण खेल संघों के प्रतिनिधि संचालक दफ्तार के चक्कर में लगे हुए हैं। इसके बाद भी खिलाड़ियों के हक के पैसे नहीं मिले। यही वजह है कि कुछ खेल संघों को छोड़कर अधिकतर का मोह अब खेल विभाग से भंग होता जा रहा है।
ट्रेजरार ओलंपिक एसोएिसशन और तैराकी संघ के उपाध्यक्ष सहीराम जाखड़ जितना अनुदान मिलता था, उससे प्रशिक्षण और प्रतियोगिता संपन्न कराना मुश्किल था। इसलिए अनुदान नहीं लिया। वहीं तैराकी संघ के सहायक संचालक विलियम लकड़ा तय प्रक्रिया के तहत अनुदान दिया जाता है। कई खेल संघों ने पंजीयन नहीं लिया है और न ही अनुदान लेते हैं। कई संघों ने नवीनीकरण भी नहीं कराया।
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