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पुतला बनाने में पारंगत है। इनकी दक्षता ऐसी कि इनकी बनाए पुतले की डिमांड प्रदेशभर में रहती है। रावण के आकर्षक पुतला तैयार करने में पारंगत डॉ. जितेंद्र साहू बताते हैं कि उनके दादाजी बिसौहाराम साहू ने इसकी शुरुआत की थी। वे पेशे से बढ़ई थे तथा गांव के रामलीला में रावण का किरदार निभाते थे।
इसी दौरान उन्होंने पुतला निर्माण की शुरुआत की। वे इतना आकर्षक पुतला बनाते थे, आसपास के लोग भी उनसे पुतला बनवाने लगे और उनकी ख्याति फैल गई। बाद में उनके पिता लोमन सिंह साहू ने इस परंपरा को आगे बढ़ाई। उनके बाद अब डॉ. जितेंद्र साहू प्रतिमा का निर्माण कर रहे हैं। वे बताते हैं चौथी पीढ़ी की युवा भी इस कला में पारंगत हो गए हैं।
डिमांड ऐसी कि ऑर्डर लौटाना पड़ता है
डॉ. जितेंद्र बताते हैं कि कुथरेल के कलाकारों के बनाए
रावण के पुतले की डिमांड प्रदेशभर से आती है। डिमांड इतनी ज्यादा होती है कि हर बार करीब आधे ऑर्डर लौटाने पड़ते हैं। इस बार भी उनके पास 59 प्रतिमाओं के ऑर्डर आए थे। इनमें से 29 को लौटाना पड़ा और 30 प्रतिमाओं का निर्माण कर रहे हैं। गांव के शेष कलाकारों की भी ऐसी स्थिति है।
25 लोग इस काम से रोजगार प्राप्त कर रहे
साहू बताते हैं कि गांव का हर युवा इस कला में पारंगत है। सभी अपने-अपने तरीके से पुतला बनाते हैं। उनके बाद 25 लोग इस काम से रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। गांव के दूसरे लोग भी इससे रोजगार प्राप्त करते हैं। उन्होंने बताया कि अलग-अलग डिमांड के अनुसार पुतलों की कीमत अलग होगी। पुतले का धड़ कुथरेल में तैयार किया जाता है, शेष स्ट्रक्चर उत्सव स्थल में खड़ा किया जाता है। वैसे तो कलाकार डिमांड के अनुसार अलग-अलग साइज के पुतले तैयार कर लेते हैं, लेकिन अधिकतर डिमांड 15 से 55 फीट तक की होती है। डॉ. साहू ने बताया कि इस बार उन्होंने खुर्सीपार, बीरगांव, दशहरा मैदान रिसाली, शांति नगर के लिए पुतले तैयार कराए हैं। इसके अलावा प्रदेश के कई हिस्सों में उनके व कुथरेल के कलाकारों के बनाए पुतले भेजे जाते हैं।