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भिलाई ने बताया है कि उसकी याचिका का आधार भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 39(डी) है, इसमें समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार है।
कार्य का स्वरूप और जिम्मेदारी
श्रमिक ने बताया कि यहां कार्य लोको परिचालन का है, जो कि अत्यंत जिम्मेदारीपूर्ण और जोखिमपूर्ण है। संयंत्र के उत्पादन और संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए तीनों पाली (प्रथम, द्वितीय और रात्रि) में काम करना पड़ता है। इसके अलावा जनरल शिफ्ट का भी प्रावधान है। लोको संचालन कार्य की प्रकृति और स्थायी कर्मचारियों के कार्य में कोई अंतर नहीं है, फिर भी वेतन और सुविधाओं में भेदभाव किया जा रहा है। वेतन में भेदभाव
भिलाई इस्पात संयंत्र में स्थायी लोको चालकों को उनके कार्य के लिए उच्च वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएं मिलती हैं। वहीं ठेका श्रमिकों को केवल न्यूनतम
मजदूरी दी जाती है। इस काम की प्रकृति स्थायी प्रवृत्ति की है, और कार्य बारहमासी है। फिर भी वेतन और सुविधाओं में वह लाभ नहीं दिया जा रहा है जो इस काम के एवज में मिलना चाहिए।
विधिक आधार
उच्चतम न्यायालय ने पंजाब राज्य बनाम जगजीत सिंह (2017) के मामले में यह साफ किया है कि अनुबंधित श्रमिकों को समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार है। इसके अलावा ठेका श्रम (विनियमन व उन्मूलन) अधिनियम, 1970 व नियम 25(1)(1) के तहत यह तय किया गया है कि ठेके पर काम करने वाले श्रमिकों को स्थायी कर्मचारियों के समान वेतन और सुविधाएं दी जाएं।
न्यायिक आदेशों का हो पालन
प्रार्थी का कहना है कि न्यायालय से पारित निर्णयों और सरकारी निर्देशों के बावजूद भिलाई इस्पात संयंत्र में अनुबंधित श्रमिकों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 39 (डी) का पालन किया जाए, जो हर नागरिक को समानता का अधिकार प्रदान करता है।