श्रावण कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानी हरेली के दिन से तंत्र विद्या की शिक्षा देने की शुरुआत की जाती है। इसी दिन से प्रदेश में लोकहित की दृष्टि से जिज्ञासु शिष्यों को पीलिया, विष उतारने, नजर से बचाने, महामारी और बाहरी हवा से बचाने समेत कई तरह की समस्याओं से बचाने के लिए मंत्र सिखाया जाएगा। तंत्र दीक्षा देने का यह सिलसिला भाद्र शुक्ल पंचमी तक चलता है। हरेली में जहां किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं, वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढऩे का मजा लेंगे। लिहाजा, सुबह से ही घरों में गेड़ी बनाने का काम शुरू हो जाता है। कई गांवों पारंपरिक खेल प्रतियोगिताओं गेड़ी दौड़, पि_ुल, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, मटका दौड़ का आयोजन किया जाता है। वहीं पशुधन को बीमारियों से बचाने के लिए औषधियुक्त आटे की लोई खिलाई जाती है।
छत्तीसगढ़ के पहले त्योहार हरेली में पारंपरिक व्यंजनों से हर घर की रसोई महकती है। एक ओर जहां चावल और गेहूं आटे का मीठा चीला पूजा में उपयोग होता है तो दूसरी ओर चौसेला, खीर और ठेठरी-खुरमी जैसे पकवानों से थाली सजती है। हरेली के दिन ग्राम देवता और कुल देवता की पूजा करने का भी रिवाज है। लोग गांव में एक जगह एकत्रित होकर ग्राम देवता से गांव की सुरक्षा के लिए पूजा करते हैं।