सरकारी दस्तावेजों के अनुसार भोंसले शासनकाल तक दुर्ग एक किला था और यहां राजा जगतपाल का राज्य था। राजा जगतपाल की काले रंग की पाषाण प्रतिमा अभी भी राजिम के प्रमुख मंदिर में है। इतिहास के जानकारों के मुताबिक दुर्ग के किले में राजा का दरबार लगता था और यहीं से वे राज्य का संचालन करते थे। दुर्ग के किल्ला मंदिर, चंडी मंदिर के अलावा छातागढ़ हनुमान मंदिर व छातागढ़ ( Durg Chhatagarh Temple) बाबा मंदिर में वे नित्य पूजा अर्चना करते थे। यूं तो मुख्य प्राचीन मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा हैं, लेकिन आस्था रखने वाले इस जगह को भगवान शिवजी से भी जोड़कर देखते हैं। अब मंदिर परिसर में शिवलिंग भी स्थापित कर लिया गया है।
जुटती है श्रद्धालुओं की भीड़ Chhatagarh Temple: छातागढ़ बाबा मंदिर में अलग-अलग अवसरों पर श्रद्धालुओं की खासी भीड़ भी जुटती है। सावन के महीनेभर में भोले बाबा के भक्त कांवर लेकर जल चढ़ाने पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि पर हर साल भव्य मेला लगता है। सामान्य दिनों में भी बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। शिवनाथ के तट पर होने के कारण लोग पिकनिक के लिए यहां पहुंचते हैं।
इस तरह पहुंचा जा सकता है मंदिर Durg Chhatagarh Temple: छातागढ़ गांव दुर्ग रेलवे व बस स्टैंड से महज 5 किलोमीटर दूरी पर है। दुर्ग से बघेरा व मोहलाई होकर आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है। छातागढ़ गांव के बाहर शिवनाथ नदी तट पर मंदिर स्थिति है। यहां आम आवाजाही नहीं होने के कारण सवारी वाहन नहीं मिलती। ऑटो अथवा निजी वाहन बेहतर विकल्प है।