किसान नत्थीलाल शर्मा ने कुछ अपने स्तर पर तथा कुछ जानकारी उद्यान विभाग के माध्यम से जुटाई। इसके बाद हैदराबाद तथा करनाल से लगभग तीन हजार पौधे मंगवा कर अपने एक हैक्टेयर खेत में पौधे लगाए। पौधों को सहारा देने के लिए विशेष रूप से तैयार सीमेंट के खंभों के सहारे चार पौधे लगाने का खर्च लगभग 2 हजार रुपए आया। शर्मा ने इन पौधों की खूब देखभाल की। एक साल बाद जून माह में इनमें फूल लगना शुरू हो गए और जुलाई से फलों का उत्पादन शुरू हो गया। यह फल नवंबर तक ये चलेंगे। एक बार पौधे लगाने के बाद लगभग 25 साल तक इससे फल मिलते हैं। पहले साल में किसान ने एक लाख रुपए से अधिक की आमदनी प्राप्त की है।
शर्मा के अनुसार पूरी तरह से तैयार पौधे पर एक साल में लगभग 15 किलो फल प्राप्त होंगे। एक फल का वजन लगभग 400 ग्राम होता है। इसकी बिक्री 250 रुपए प्रति किलो की दर से होती है। नत्थीलाल शर्मा ने अपने फॉर्म पर उत्पादित ड्रैगन फू्रट को अलवर, भरतपुर, जयपुर तथा स्थानीय बाजार डीग में औसतन 200 रुपए प्रति किलो की दर से बेचा है।
इसलिए उपयोगी है यह
ड्रैगन फ्रूट में विटामिन सी, फाइबर, एंटी आक्सीडेंट, प्रोबायोटिक, सूक्ष्म पोषक तत्व आदि प्रचुरता में पाए जाते हैं, जिससे यह स्वस्थ तथा बीमार व्यक्ति के लिए लाभकारी साबित होता है। मधुमेह के रोगियों के लिए यह रामबाण का कार्य करता है। साथ ही डेंगू मरीजों में प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए इसका उपयोग बहुतायत से किया जाने लगा है। यदि स्वस्थ व्यक्ति इस फल का नियमित सेवन करता है तो बीमारियों की संभावना कम हो जाती है। इस फल में गूदा अधिक होता है। इसे किसी भी उम्र का व्यक्ति खा सकता है।
उष्ण कटिबंधीय पौधा है ड्रैगन फ्रूट
ड्रैगन ड्रैगन फ्रूट की उत्पत्ति मेक्सिको तथा दक्षिण मध्य अमेरिका से हुई है। विश्व में उत्पादन की दृष्टि से वियतनाम पहले स्थान पर है, जो कुल उत्पादन का लगभग 51 प्रतिशत, चीन का उत्पादन लगभग 33 प्रतिशत तथा इंडोनेशिया का हिस्सा 11 प्रतिशत है। इसके बाद थाईलैंड, श्रीलंका एवं मलेशिया आदि देशों में इसका उत्पादन हो रहा है। इस पौधे को पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है। खेती के लिए उपयुक्त तापमान 20-35 डिग्री सेल्सियस होता है। भारत में ड्रैगन ड्रैगन फ्रूट की खेती
भारत में ड्रैगन ड्रैगन फ्रूट की खेती वर्ष 1990 के बाद शुरू हुई। वर्तमान में लगभग 3 हजार हैक्टेयर में हो रही है। देश में मुख्य रूप से मिजोरम, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और राजस्थान में इसकी खेती हो रही है। क्षेत्रफल की दृष्टि से मिजोरम पहले, गुजरात दूसरे, कर्नाटक तीसरे तथा महाराष्ट्र चौथे स्थान पर है। राजस्थान में इसकी खेती को बढ़ावा देने का श्रेय पूर्व कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी को जाता है। सैनी ने राजस्थान के कृषि मंत्री के अपने कार्यकाल में विशेष प्रयास करते हुए राजकीय फर्म ढिंढोल (बस्सी) जिला जयपुर में इसकी शुरुआत कराई थी।
फसल विविधीकरण के दौर में किसानों को खेती को आर्थिक रूप से लाभकारी बनाने के लिए परंपरागत फसलों को छोडकऱ नवाचार अपनाने होंगे। नत्थीलाल शर्मा ने जोखिम लेते हुए भरतपुर संभाग के लिए नई फसल की खेती शुरू की है। मुझे विश्वास है कि शर्मा की मेहनत और जज्बा इस नवाचार के लिए उनको निश्चित रूप से सफलता दिलाएंगे। ये खेती स्थानीय, जिले तथा संभाग में किसानों को प्रोत्साहित करते हुए अपना परचम लहराएगी।- योगेश कुमार शर्मा, संयुक्त निदेशक उद्यान, भरतपुर संभाग
सामई गांव में नत्थीलाल शर्मा ने चुनौती के रूप में लेते हुए ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत की है, जो स्थानीय स्तर के लिए बिल्कुल नई खेती है, लेकिन शर्मा की ओर से नवाचार के रूप में इसकी शुरूआत की गई है। पहले साल की पैदा को देखते हुए आने वाले वर्षों में और अधिक आमदनी प्राप्त होगी और स्थानीय किसानों के लिए प्रेरणास्रोत का काम करेगी।- गणेश मीणा, उप निदेशक उद्यान विभाग डीग