खास बात ये है कि, वैसे तो ये गांव मध्य प्रदेश में है, लेकिन देश की आजादी के बाद से आज तक इस गांव के सारे बच्चे पढ़ाई करने के लिए महाराष्ट्र जा रहे हैं। तमाम मूलभूल अधिकारों से जुड़ू सुविधाओं से महरूम इस गांव में कोई लड़की बहू बनकर आना नहीं चाहती। जहां के ग्रामीण गेंहू पिसाने से लेकर मोबाइल रीचार्ज कराने तक महाराष्ट्र जाने को मजबूर ह। वहीं राशन लेने के लिए 8 किमी दूर और दूसरे सरकारी कामों के लिए 60 किमी दूर जाना पड़ता है। इन असुविधाओं के संबंध में जानकारी देते हुए ग्रामीणों का कहना है कि, यहां जन प्रतिनिधि सिर्फ पांच साल में एक बार चुनाव से पहले एक बार आता है। कई बार तो उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि, जिस जनप्रतिनिधि ने गांव आकर तमाम दावे और वादे करते हुए वोट मांगा था, वो जीता भी या नहीं। ऐसी अव्यवस्थाओं के साथ जी रहे ग्रामीणों ने इस बार फैसला लिया है कि, अब अगर बिजली नहीं तो वोट भी नहीं।
ग्रामीण बोले- उजाले का मतलब: दोपहर
बिजली, पेयजल, स्कूल, आंगनबाड़ी, राशन दुकान ये वो मूलभूत सुविधाएं हैं, जिसे लेकर प्रदश सरकार हर छोटे से छोटे गांव और कस्बे तक पहुंचाने का दावा करती है। लेकिन, हकीकत में आजादी के 75 साल बाद भी मध्य प्रदेश के बेतूल जिले के अंतर्गत आने वाले भैंसदेही के छोटे से गांव बुरहानपुर में रहने वाले ग्रामीण इन सब मूल सुविधाओं से वंचित रहकर जीवन गुजार रहे हैं। गांव के लोग आदम काल में जीवन जीने को मजबूर हैं। यहां सबसे बड़ी और पहली समस्या बिजली है, जिसके अभाव में यहां के ग्राणीण विकास से बेहद पीछे हैं। ये ना तो आधुनिक ढंग से खेती कर पाते हैं और न ही दुनिया के दूसरे क्षेत्रों से जुड़कर रह पाते। उनके गांव के सभी लोगों ने चिमनी और दीये की रोशनी में ही जिंदगी गुजार दी है। लोगों का कहना है कि, हमारे लिए उजाले का मतलब सिर्फ दोपहर है, इसके बाद सब कुछ अंधियारा है।
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ग्रामीणों ने सुनाए हाल
-ग्रामीण तुलसीराम धोटे ने बताया कि बैतूल के भैंसदेही ब्लॉक में आने वाले बुरहानपुर की दूरी ब्लॉक मुख्यालय से ही 60 किमी है। जबकि महाराष्ट्र के परतवाड़ा की दूरी यहां से महज 5 किमी है, इसलिए गांव के लोग हर छोटे बड़े कामों के लिए महाराष्ट्र पर निर्भर हैं। चाहे गेंहू पिसवाना हो, बच्चों का स्कूल हो, खेती किसानी की जरूरतें हो या मोबाइल को चार्ज करने जैसी जरूरत, सब महाराष्ट्र जाकर ही संभव हो पाता है।
-ग्रामीण महिला लाला सावलकर और सुरेखा सावलकर का कहना है कि, पिछले 75 वर्षों में गांव का ऐसा कोई बच्चा नहीं हैं, जिसने मध्य प्रदेश के स्कूलों में पढ़ाई की हो। इसकी वजह है बिजली सहित कई मूलभूत सुविधाओं का अभाव। छोटी उम्र में ही यहां के बच्चों को पढ़ने के लिए महाराष्ट्र भेजना पड़ता है। कई लोग तो इस अभाव में स्कूल तक की पढ़ाई नहीं कर पाए हैं। लेकिन, अब हम सभी को अपनी आने वाली पीढ़ियों की फिक्र सताती है।
-किशन भुसुम के अनुसार, बिजली नहीं होने से पेयजल और सिंचाई की सुविधाएं भी यहां नहीं है। खेती के लिए ग्रामीण बारिश का इंतजार करते हैं तो वहीं पीने का पानी डेढ़ से दो किमी दूर जाकर लाना पड़ता है। इन समस्याओं का खामियाजा गांव के नौजवानों को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि गांव की दुर्दशा देखकर कोई भी लड़की यहां बहु बनकर आने को तैयार नहीं।
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बड़ी शर्म आती है
सच तो ये है कि, इस गांव में आकर इस बात का यकीन करना ही संभव नहीं है कि, ये 21वीं सदी के दौर से जुड़ा गांव है। जहां विकास की गाथा बताने के लिए विकास यात्राएं गांव – गांव पहुंच रही है। गांव से महज एक किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के गांव बिजली से जगमग है। वहीं, जिस भैंसदेही ब्लॉक में ये गांव आता है वहां भी 24 घंटे 365 दिन बिजली रहती है। ऐसे गांव में विकास यात्रा का जाना बेहद शर्मनाक है। शायद अधिकारियों को यहां ये तो समझ आया ही होगा कि, उन्होंने कितना और कैसा विकास किया है।