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97 सालों से इस गांव में नहीं बढ़ी जनसंख्या, पूरे विश्व के लिए बना मिसाल

भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए परिवार नियोजन की मिसाल है ये गांव, 97 सालों से नहीं बढ़ी यहां जनसंख्या, जानिए कारण

बेतुलNov 17, 2019 / 02:14 pm

Faiz

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97 सालों से इस गांव में नहीं बढ़ी जनसंख्या, पूरे विश्व के लिए बना मिसाल

भोपाल/ इस समय जहां एक तरफ भारत तेजी से बढ़ती आबादी की समस्या से जूझ रहा है। वहीं, अगर आपसे ये कहा जाए कि, देश में एक गांव ऐसा भी है, जिसकी जनसंख्या पिछले 97 सालों से स्थिर है, यानी यहां जितने लोग पिछले 97 साल पहले थे आज भी उतने ही हैं, तो शायद आपको इस बात पर यकीन नहीं होगा। लेकिन ये सौ फीसद हकीकत है। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में धनोरा नाम का एक ऐसा गांव है जहां की जनसंख्या साल 1922 से अब तक 1700 ही है। यहां किसी भी परिवार में दो से ज्यादा बच्चे नहीं हैं। इसका बड़ा कारण ये भी है कि, यहां के लोगों में बेटे और बेटी को एक समान माना जाता है।

 

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दुनिया के लिए बना परिवार नियोजन की मिसाल

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कई अर्थशास्त्रों ने देशभर की बढ़ती महंगाई और बिगड़ती अर्थव्यवस्था का कारण देश की तेजी से बढ़ती हुई आबादी को बताया है। एक तरफ आबादी तेजी से बढ़ रही है, वही सुविधाएं और संसाधन सीमित है। या यूं कहें कि, दिन ब दिन घटते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में प्रदेश का धनोरा गांव इन स्थितियों में दुनिया के लिए परिवार नियोजन की मिसाल बन गया है, क्योंकि यहां की करीब एक सदी से स्थिर है। इन सालों में गांव की जनसंख्या 1700 से आगे नहीं बढ़ी। हालांकि, इसके पीछे भी एक बड़ी ही रोचक कहानी हैं। हम आपको उस कहानी के बारे में बताते हैं।

 

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ऐसे मिली प्रेरणा

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जिले के वरिष्ठ पत्रकार और समाज सेवी अखिलेश वर्मा के मुताबिक, सन् 1922 में यहां कांग्रेस का एक सम्मेलन हुआ था, जिसमें कस्तूरबा गांधी शामिल हुई थीं। उन्होंने ग्रामीणों को खुशहाल जीवन के लिए ‘छोटा परिवार, सुखी परिवार’ का नारा दिया था। कस्तूरबा गांधी की बातों से गांव के ग्रामीण काफी प्रभावित हुए थे, उसी समय सभी ग्रामीणों ने इस नारे को अपनी जीवनी बनाने का संकल्प लिया था। तभी से यहां के ग्रामीणों ने परिवार नियोजन का सिलसिला शुरू कर दिया था, जो आज भी कायम है। ग्रामीणों के मुताबिक ये सिलसिला आजीवन जारी भी रहेगा।

 

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परिवार नियोजन को माना कर्तव्य

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गांव के बुजुर्गो की माने तो, उनके माता पिता पर कस्तूरबा गांधी द्वारा दिये संदेश का गहरा प्रभाव पड़ा था, जिस संदेश को वैसा ही उन्होंने हमें भी समझाया। हमें भी उस संदेश ने प्रभावित किया। अब हम भी अपनी आने वाली नस्लों को यही संदेश देते हैं, जिसका असर अब तक कायम है। साल 1922 में मिले संदेश का असर सभा में भोजूद पूरे गांव के दिल और दिमाग पर ऐसा बैठा कि, गांव में परिवार नियोजन के लिए ग्रामीणों में जबरदस्त जागरूकता आई। लगभग हर परिवार ने एक या दो बच्चों पर परिवार नियोजन करवाया, जिससे काफी तेजी से गांव की जनसंख्या स्थिर होने लगी। बेटों की चाहत में परिवार बढ़ने की कुरीति को भी यहां के लोगों ने नकार दिया। एक या दो बेटियों के जन्म के बाद परिवार नियोजन को अपना कर्तव्य माना।

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