जानकारी अनुसार सैकड़ों साल पहले बांसखोह में एक राजा थे। उनके तीन रानियां थी। विवाह के बाद भी इन तीनों के कोई संतान नहीं हुई। ऐसे में एक दिन एक रानि को सपने में शिवजी दिखाई दिए। इस पर तीनों रानिया पास ही जंगल में बने शिव मंदिर में गई तो शिवमंदिर में रह रहे बावलनाथ बाबा ने रानियों को शिव मंदिर में पूजा करने की सलाह दी। इसके बाद तीनों रानियों में से जो सबसे छोटी थी उसने बाबा की बात को अमल किया। इसके बाद वह भोलनाथ की पूजा अर्चना करने लगी।
छोटी रानी ने हर माह अमावस्या पूर्व चतुर्दशी को वीरान जंगल में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर में पूजा करने व्रत लिया। वह शाही सवारी के साथ मंदिर जाती और पूजा अर्चना कर लौटती। शाही सवारी को देखने के लिए भी लोगों की भीड़ जुटती थी। भोलेनाथ की पूजा अर्चना के बाद छोटी रानी के कुछ दिनों में एक संतान प्राप्त हुई। रानी नई नवेली थी। यानि उसका विवाह कुछ समय पहले ही हुआ था। इसलिए क्षेत्र में कहा जाने लगा कि नई पर नाथ यानि बालवनाथ की कृपा हुई है। बाद में यह स्थान नई का नाथ अथवा नईनाथ के नाम से प्रचलित हो गया।
वहीं शिव मंदिर के पास बालवनाथ बाबा का धूणा है। वहां उनके चरणों की पूजा होती है लोग मन्नत मांगते है। यहां हर महीने अमावस्या से पूर्व चतुदर्शी को मेला आयोजित होता है। नई नाथ के मंदिर में साल में दो बार शिवरात्रि को और श्रावण में मेले आयोजित होते है। इन दोनों ही मेलों में लाखों की संख्या में भक्त आते है। श्रावण मास में यहां कावड़ यात्राओं की धूम रहती है।