दो दशक के तेल, गैस और खनिज से आई आर्थिक उन्नति से बाड़मेर तो दुुबई नहीं बना लेकिन प्रभावशाली और दबंग जरूर दुबई के शेखों की तरह ठाट-बाट में आ गए है। इनमें गैंगस्टर और हिस्ट्रीशीटर भी शामिल है। दबंगई, राजनीतिक पहुंच और प्रशासनिक सांठगांठ से कंपनियों में काम कर मालामाल हो रहे इन लोगों ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में जनहित को हाशिए पर रख दिया। जनप्रतिनिधि भी बाड़मेर के सर्वजनहिताय-सर्वजनसुखार को भूलकर मेरा आदमी, मेरी गाड़ी, मेरा काम और मैं…पर आकर अटक गए।
बाड़मेर•Jun 15, 2023 / 05:14 pm•
Ratan Singh Dave
प्रभावशालियों व दबंगों को व्यक्तिगत लाभ … हाशिए पर सार्वजनिक विकास दुबई कब?
बाड़मेर पत्रिका. पॉवर प्रोजेक्ट- दस हजार मेगावाट पॉवर प्लांट में करोड़ों के काम हो रहे है। इन कामों के लिए शुरू से ही प्रभावशालियों ने अपने आदमी और अपने काम की हौड़ को लगा दिया। जिसका जितना प्रभाव उसको उतना काम की रीत पर पिछले बीस साल से व्यक्तिगत विकास करने वाले एक दर्जन से अधिक लोग है लेकिन यहां सार्वजनिक विकास को लेकर बड़ा काम गिनाने लायक नहीं हैै। सीएसआर फण्ड का तो यह आलम है कि प्रशासन को जहां लगता है कि सरकारी काम अटक रहा है वहां रुपया लगाकर इसको सीएसआर का नाम दिया जा रहा है। जनप्रतिनिधियों की पैरवी भी यही है। यह एक कंपनी बाड़मेर शहर को गोद ले लेती तो सारे चौराहे, पार्क, टाऊनहॉल, हरियालों बाड़मेर सहित तमाम स्थितियां सुधर जाती लेकिन टुकड़ा-टुकड़ा जहां मर्जी जहां- तहां खर्च करवाने की लीक चल पड़ती है।
रिफाइनरी
2018 में निर्माण प्रारंभ हुआ। 60 हजार करोड़ के कार्य अब तक हो चुके है। रिफाइनरी के पास ही रिफाइनरी में काम करने वालों के लिए आलीशान कॉलोनी भी बन रही है। ये दोनों काम इस द्रुतगति से हो रहे है लेकिन पचपदरा और सांभरा में इस कॉलोनी के समकक्ष एक भी काम नहीं हुआ है। पार्क, स्कूल, तालाब संरक्षण, सड़क, बिजली, पानी सहित तमाम योजनाओं को लेकर एक प त्थर नहीं लगा है। रिफाइनरी के भीतर काम को लेकर जंग छिड़ी है। इसमें दबंग, प्रभावशाली और एप्रोच रखने वाले कई बार अपने लोगों को काम लगाने के लिए आपस में अड़े और लड़े है लेकिन एक बार भी सार्वजनिक हित के लिए धरना प्रदर्शन नहीं हुआ है।
कोयला
कोयला माइन्स से तो इस इलाके की करीब 55 हजार बीघा जमीन खोदी जा रही है। गांव के गांव खाली हुए है। यह सब लोग आकर बाड़मेर शहर में बसे है। कोयले की राख और कोयले का परिवहन दोनों ही काम प्रभावशालियों के खाते में डालते ही वे चुप हो गए है। कोयला माइन्स से कटे पेड़ों के बदले में बाड़मेर शहर या इलाके को न तो कोई बड़ा वाटर पार्क मिला है न ही कोई बगीचा। जितने पेड़ काटे गए उनके बदले में दिखाने को बड़ा जंगल भी नहीं है,जिसको कंपनियां बता सके कि यह 20 साल में हरियाली का पूरा कार्य किया गया है।
गैस टर्मिनल
गैस टर्मिनल में गुड़ामालानी विधायक ने एक बार धरना दिया,जिसका उद्देश्य स्थानीय को रोजगार देना था। स्थानीय को रोजगार की शर्त तो मान ली गई लेकिन नगर गांव से लेकर गुड़ामालानी के विकास के लिए बड़ा काम क्या होगा? इस पर अभी तक कोई धरातल पर काम नहीं है। यहां पर भी जिसकी लाठी उसकी भंैस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। सार्वजनिक काम की चर्चा ही नहीं है और व्यक्तिगत लाभ के लिए सभी तैयार हो रहे है।
सार्वजनिक विकास का रोडमैप
बाड़मेर शहर- नगरपरिषद बाड़मेर ने हाल ही में शहर में सौंदर्यकरण का कार्य कर आकर्षित किया है। बाड़मेर शहर, भादरेस, कपूरड़ी,सोनड़ी, कुड़ला तक का विकास का रोडमैप बनाने की दरकार है।
बायतु कस्बा- बायतु तो कोरोनाकाल में भी प्रतिदिन 10करोड़ तेल के दे रहा था। प्रतिदिन जहां से करोड़ों रुपए जा रहे है उस इलाके में 2009 से अब तक यानि 14 साल में नया बायतु नजर आना चाहिए था। सार्वजनिक स्थल का विकास कहीं पर नहीं है। व्यक्तिगत समृद्धि में प्रभावशाली पीछे नहीं रहे है।
पचपदरा कस्बा- पचपदरा-सांभरा कस्बे में रिफाइनरी के चार साल में बड़ा बदलाव मार्केट का आया है। मॉल, दुकानें और प्रतिष्ठान्न बढ़े है। रिफाइनरी में भी प्रभावशालियों का समूह विकास करने में लगा है और सार्वजनिक हित कहीं नहीं। इससे बेहतर तो यहां सेठ गुलाबचंद का समय कहा जाता है जब अकेला व्यक्ति पचपदरा को कई सौगातें दे गया, जो आज भी याद रहती है।
बालोतरा शहर- टैक्सटाइल्स की नगरी बालोतरा में रिफाइनरी आने के साथ ही विकास की तस्वीर खींचनी थी। यहां नगरपरिषद इलाके में अभी तक रिफाइनरी के हिस्से से कुछ भी खर्च नहीं हुआ है। बालोतरा, जसोल, नाकोड़ा, पचपदरा, बिठूजा, खेड़, तिलवाड़ा, पचपदरा, सांभरा एक पूरा समूह है जो पर्यटन विकास की बड़ी आस लिए है।
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