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बाड़मेर

बीमारी का इलाज कराने की बजाए गरीब पिता ने बेटे को पढ़ाया, बेटे ने पहले अटेम्प्ट में ही किया NEET क्लियर

NEET 2019 पिता ने दिन-रात मजदूरी कर पाई-पाई जुटा कर उसे कोटा भेजा और पढ़ाई जारी रखवाई। यहां तक कि उसके पिता ने अपनी गंभीर बीमारी सिलोकोसिस का इलाज भी नहीं करवाया और बेटा भी पढ़ने में मेधावी होने की वजह से पहली ही बार मे नीट क्लियर कर लिया।

बाड़मेरJun 08, 2019 / 08:38 pm

abdul bari

neet 2019

बीमारी का इलाज कराने की बजाए गरीब पिता ने बेटे को पढ़ाया, बेटे ने पहले अटेम्प्ट में ही किया NEET क्लियर

बाड़मेर।
कहतें है कि मन मे अटल विश्वास हो तो नामुमकिन भी मुमकिन हो सकता है। ऐसा ही एक उदाहरण राजस्थान के बाड़मेर में सामने आया है। यहां पत्थर तोड़ने व पत्थर पर घड़ाई का काम करने वाले मजदूर पिता ने पैसों की तंगी के बावजूद भी अपने बेटे की पढ़ाई जारी रखवाई और बेटे ने पिता की आशाओं पर खरा उतरते हुए ( NEET ) 2019 एससी कैटेगरी में 4582 रैंक में 65वीं जगह बनाकर पहले अटेम्प्ट में ही क्लियर कर लिया। जब घरवालों को बेटे के रिजल्ट के बारे में पता चला तो माता-पिता खुशी से फूले नहीं समाए और घर मे बधाई देने वालों का तांता लग गया।
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पाई-पाई जुटा कर कोटा भेजा

दरसअल, बाड़मेर के देव प्रकाश ने NEET 2019 9 परीक्षा एससी कैटेगरी 4582 में 65वीं रैंक हासिल की और अपने माता पिता का सपना पूरा किया। देवप्रकाश के अनुसार उसके पिता को सिलोकोसिस बीमारी है जिसके चलते वह डॉक्टर ही बनना चाहता है और गरीबो की सेवा करना चाहता है। देवप्रकाश बताता है कि परीक्षा के लिए उसने प्रतिदिन 8 घंटे तक लगातार पढ़ाई की। साथ ही उसने बताया कि उसका परिवार आर्थिक स्थिति से बहुत कमजोर है, हमेशा सोचता रहा हूं कि पढ़ाई के लिए इतने पैसे कहां से आएंगे। लेकिन, उसके पिता ने दिन-रात मजदूरी कर पाई-पाई जुटा कर उसे कोटा भेजा और पढ़ाई जारी रखवाई। यहां तक कि उसके पिता ने अपनी गंभीर बीमारी सिलोकोसिस का इलाज भी नहीं करवाया और बेटा भी पढ़ने में मेधावी होने की वजह से पहली ही बार मे नीट क्लियर कर लिया।
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मजदूर पिता टीकम चंद के घर में खुशियों का माहौल

बेटे की इस सफलता से मजदूर पिता टीकम चंद के घर में खुशियों का माहौल है और बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। बेटे वेद प्रकाश पर माता-पिता को पूरा भरोसा था और बेटे ने भी अपने माता-पिता का भरोसा नहीं तोड़ा और नीट फतह कर के ही माना। देव प्रकाश बताते हैं कि उसे कोटा जाने में काफी दिक्कत हुई क्योंकि घर वालों के पास इतने पैसे नहीं थे उसके बावजूद भी पिता ने इधर-उधर से पैसे उधार लिए और दिन-रात मजदूरी कर उसे कोटा भेजा।
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इंसान कुछ ठान लेता है तो सफलता कदम चूमती है

देव बताते हैं कि उनके पिता को गंभीर बीमारी होने के बावजूद भी उन्होंने मुझे पढ़ाया और आज मैं नीट के पहले प्रयास में ही सफल हो गया हूं। देव प्रकाश की कहानी सबक देती है कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हो अगर मन में इंसान कोई चीज ठान लेता है तो आखिरकार सफलता उसके कदम ही चूमती है।
मां-बाप का सर फर्ख से ऊंचा

देव प्रकाश और उसके घर वालों ने यह बात ठान ली थी कि वेद प्रकाश को डॉक्टर बनाना है और इसी के लिए उसके परिवार में काफी मशक्कत से पैसे जुटा कर उसे कोटा भेजा और आज उसने अपनी सफलता से अपने मां-बाप का सिर फख्र से ऊंचा कर दिया है, उसकी कामयाबी बताती है कि मेहनत ने उसे कामयाब बनाया है, बेशुमार सुविधाओं ने नहीं।

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