मानवेंद्र सिंह एक राजनीतिक परिवार से हैं। पिता जसवंत सिंह राजस्थान की राजनीति का जाना-माना चेहरा थे। मानवेंद्र सिंह ने 1999 में बाड़मेर-जैसलमेर से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के सोनाराम चौधरी से शिकस्त खाई। 2004 के चुनावों में मानवेंद्र सिंह ने वापसी करते हुए सोनाराम चौधरी को बड़े अंतर से हराया। हालांकि, 2009 में फिर उन्हें कांग्रेस के हरीश चौधरी के सामने हार का सामना करना पड़ा। जिसके बाद 2013 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने शिव विधानसभा सीट से जीत हासिल की। लेकिन उन्होंने विधायक रहते हुए वर्ष 2018 में भाजपा छोड़ दी थी।
उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने झालरापाटन से वसुंधरा राजे के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन बड़े वोटों के अंतर से उनकी हार हुई। 2019 में बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं पाए। 2023 के विधानसभा चुनाव में सिवाना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। लेकिन जीत नसीब नहीं हुई।
दरअसल, इस बार बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर चुनावी मुकाबला दिलचस्प बना हुआ है। बीजेपी ने कैलाश चौधरी का टिकट दोहराया है। आरएलपी से कांग्रेस में शामिल हुए उम्मेदाराम बेनीवाल को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। वहीं निर्दलीय उम्मीदवार शिव विधायक रवींद्र सिंह भाटी ने ताल ठोक रखी है। इससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। यहां जाट-राजपूत जातीय समीकरणों के साथ ओबीसी की छोटी जातियां, अल्पसंख्यक और युवा-महिला मतदाता निर्णायक भूमिका में होंगे। ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि मानवेंद्र सिंह के भाजपा आने से सियासी समीकरण बदल सकते हैं।