थार के रेगिस्तान की तस्वीर पिछले एक दशक से बदल रही है। यहां तेल के साथ ही पानी भी भूगर्भ में निकलने लगा है। एेसे में अब यहां पेड़-पौधों को लेकर भी विभागीय नीति बदली है। इस साल से वन विभाग ने सख्ती से थार में कांटेदार पौधे लगाने से मना कर दिया है। लिहाजा 1.50 लाख पौधे इस बार लगे और उसमें एक भी कांटेदार नहीं है। सभी छायादार पौधे लगाए गए है।
बबूल नहीं लगेगा- थार में 1970 व 90 में बढ़ते रेगिस्तान को रोकने लिए विलायती बबूल का छिड़काव हैलीकाफ्टर से किया गया था। टिब्बा स्थरीकरण योजना में भी समूचे जिले में वनविभाग ने लाखों रुपए लगाकर बबूल ही बबूल बोया था। कांटेदार इस पौधे को लगाने का लक्ष्य मात्र रेगिस्तान का प्रसार रोकना था लेकिन अब इसे लगाने पर सख्ती से मना कर दिया गया है। कारण सामने आया कि यह पेड़ अन्य किसी वनस्पति को नहीं पनपने दे रहा है। इसके अलावा केर की झाडि़यां और अन्य कांटे वाले पौधे भी नहीं लगाए जा रहे हैं।
नीम का राज- थार में अब सर्वाधिक नीम, करंज, पीपल, सरेस, खेजड़ी व रोहिड़ा के व़ृक्ष लगाए जा रहे हैं। इनसे छाया के साथ ही और भी औषधीय फायदे भी मिलने लगे हैं।
नहीं लगे है कांटेदार पौधे- इस बार कांटेदार पौधे नहीं लगाए गए हैं। अब छायादार पौधे ही लग रहे हैं। पानी की उपलब्धता के बाद अब कांटेदार पौधे को छोड़कर नवाचार किया जा रहा है। – चंद्रशेखर जोशी, क्षेत्रिय वन अधिकारी, बाड़मेर