अजहरी मियां की सियासी मामलात में दिलचस्पी नहीं थी। यह उन्ही की मजबूती थी कि आला हजरत के उर्स में सियासी तकरीरों पर पूरी तरह से रोक रहती है। पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के आला हजरत खानदान से अच्छे रिश्ते थे। अपने शासन काल मे उन्होंने अजहरी मियां को एमएलसी बनाने की पेशकश की थी, जिसे अजहरी मियां ने कबूल नहीं किया। 1989 में गवर्नर उस्मान आरिफ ने भी उन्हें एमएलसी बनाने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया था।
अजहरी मियां ऐसी शख्सियत थे कि हर कोई उनसे मिलना चाहता था। तमाम सियासी लोगों ने भी उनसे मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने दिलचस्पी नहीं दिखाई। कई साल पहले राहुल गांधी ने अपनी पद यात्रा के दौरान अजहरी मियां से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन अजहरी मियां ने उनसे मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसी तरह से तत्कालीन सपा के वरिष्ठ नेता अमर सिंह और संजय दत्त भी मियां से मिलने पहुंचे थे, लेकिन उन्हें मायूसी हाथ लगी। सियासत से प्रभावित हुए बगैर उन्होंने सियासत का मजहबी मामलों में दखल का हमेशा विरोध किया। उन्होंने नसबंदी के खिलाफ फतवा भी जारी किया था। तमाम दबाव पड़ने के बाद भी उसे वापस नहीं लिया था।
दुनिया भर के खास मुस्लिम चेहरों में बरेलवी धर्मगुरू मुफ्ती मोहम्मद अख्तर रजा खां उर्फ अजहरी मियां दुनिया भर के प्रभावशाली मुसलमानों में टॉप 50 में शामिल थे। ओमान की द रॉयल इस्लामिक स्टे्रटजिक स्टडी सेंटर (आरआईएसएससी) ने एडिशन 2016 के टॉप-50 की सूची में दुनिया भर के प्रभावशाली मुसलमानों के नाम जारी किए थे, जिसमें अजहरी मियां को 25 वां स्थान मिला था।