हाफिजगंज के कस्बा सेंथल के रहने वाले रईस ने हल्द्वानी में भाई इदरीश की गुमशुदगी दर्ज कराई थी। इसमें कहा था कि उसका भाई इदरीश हल्द्वानी में ठेला लगाकर स्पोर्ट्स का सामान बेचता था। हल्द्वानी में वह धर्मशाला के कमरा नंबर नौ में रहता था में रहता था। 10 अगस्त 1994 को जब रईस हल्द्वानी गया तो भाई के बारे में धर्मशाला के मेनेजर से पता किया। मेनेजर ने बताया कि नौ अगस्त दो बजे से ठेला खड़ा है मैंने नहीं देखा। इदरीश का कोई पता नहीं चला। सेंथल के नवाब हुसैन, शरीफल, नायाब हुसैन रुपयों को लेकर रंजिश चल रही थी। 25 अगस्त 1994 को भोजीपुरा में पचदौरा के जंगल में ईख के खेत एक कंकाल मिला। पास में कपड़े पड़े हुए थे। रईस ने बताया कि कपड़े उसके भाई इदरीश के हैं। उसके भाई की नवाब, शरीफल व नायाब हुसैन ने हल्द्वानी से अपहरण कर उसे मार दिया। लाश यहां ईख के खेत में फेंक दी।
आरोपियों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अमजद सलीम ने अदालत में कहा कि रईस की रुपयों के लेनदेन को लेकर कई लोगों से रंजिश चल रही है। आरोपियों से भी लेनदेन को लेकर रंजिश चल रही थी। इसी खुन्नस में नाम लिखाया गया है। मुकदमे की सुनवाई में यह तथ्य भी आया कि खुद रईस ने अपने भाई का बीमा कराकर उसका नॉमिनी अपनी पत्नी को बनाया था।
भारतीय जीवन बीमा कंपनी का कहना था कि रईस ने इदरीश के कत्ल का झूठा मुकदमा लिखवाया है। बीमा कंपनी ने बीमा निरस्त कर दिया। इससे मामला और संदिग्ध हो गया।
इधर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया कि हत्या का कारण स्पष्ट नहीं है। चूंकि महज कंकाल मिला था। घटना का कोई साक्षी नहीं था। अभियोजन पक्ष अदालत में आरोपियों को दोषी सिद्ध करने में नाकाम रहा। सुनवाई के दौरान आरोपी नायाब हुसैन की मौत हो गई।
अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश पशुपति नाथ मिश्रा ने आरोपी नवाब हुसैन व शरीफल को दोष मुक्त करार दिया। अधिवक्ता अमजद सलीम ने बताया कि 30 साल चले इस मुकदमे के दौरान आरोपी करीब 70 साल के हो गए। उनसे अब ठीक से चला भी नहीं जाता। बीमा कराकर पत्नी को नॉमिनी बनाना बाद में दावे से मुकरने से मुकदमे में अहम मोड़ आ गया। मामले में अभियोजन संदेह से परे साबित करने में असफल रहे हैं। ऐसे में संदेह का लाभ बचाव पक्ष को प्राप्त हो गया।