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नौतपा क्यों जरूरी
नौतपा में यदि बारिश नहीं हुई तो फिर आने वाले समय में अच्छी बारिश होना माना जाता है। यदि नौतपा में बारिश हो गई या गर्मी कम पड़ी तो मानसून कमजोर बताया जाता है। नौतपा के दौरान सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर प्रभाव डालती है। इससे प्रचंड गर्मी पड़ती है। समुद्र एवं नदियों के पानी का वाष्पीकरण तेजी से होता है। इसी के प्रभाव से घने बादल बनते हैं। धरती से हवा गर्म होकर ऊपर की ओर उठ जाती हैं। इसका स्थान लेने के लिए पूर्व से हवा तेजी से आती है। यहीं मानसून के बादलों को हिंद महासागर से खींच लाती हैं और बारिश होती है। इसे ही मानसून कहा जाता है। यदि समुद्री क्षेत्रों में नौतपे के दौरान ही बारिश हो गई तो वाष्पीकरण की यह प्रक्रिया रुक जाती है और बादल कम बन पाते हैं। मान्यता है कि यदि इन नौ दिनों के दौरान ही बारिश होने लगे तो इसे नौपता या रोहिणी का गलना माना जाता है। फिर अच्छे मानसून की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। कई ज्योतिषी मानते हैं कि यदि नौतपा के सभी दिन पूरे तपें, तो यह अच्छी बारिश का संकेत होता है।