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बाराबंकी

मेंथा की फसल किसानों को बना रही आत्मनिर्भर, परंपरागत खेती के मुकाबले मिल रहा अच्छा मुनाफा

एक एकड़ में करीब 50 से 60 किलोग्राम मेंथा (पिपरमेंट) आयल तैयार हो जाता है…

बाराबंकीJun 28, 2018 / 08:15 am

नितिन श्रीवास्तव

Mentha Peppermint ki kheti

मेंथा की खेती किसानों को बना रही आत्मनिर्भर, परंपरागत खेती के मुकाबले मिल रहा अच्छा मुनाफा

बाराबंकी. परंपरागत खेती छोड़कर आधुनिक खेती करने वाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आधुनिक खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। परंपरागत खेती करने से कई बार किसानों का लागत खर्च भी नहीं मिल पाता है। जिसके चलते कई किसान अब मेंथा (पिपरमेंट) की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इस तरह की आधुनिक खेती से उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार आ रहा है, जिससे वे आत्मनिर्भर भी हो रहे हैं।
मेंथा की खेती में अच्छा मुनाफा

किसानों की अगर मानें तो परंपरागत खेती अब लगातार घाटे का सौदा साबित हो रहा है। ऐसे में मेंथा की खेती किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में सहायक साबित हो रही है। किसानों को आत्मनिर्भर बनने का मौका मिला है। हम बड़े पैमाने पर मेंथा की खेती करते अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। कहते हैं कि मेंथा की खेती करने के लिए जमीन का सही चयन बहुत जरूरी है। बलुई, दोमट और चिकनी मिट्टी इस खेती के लिए सबसे उपयोगी है। इस खेती को करने में प्रति एकड़ औसतन लागत 15-20 हजार रुपए की लागत आती है। किसानों के मुताबिक एक एकड़ में करीब 50 से 60 किलोग्राम मेंथा आयल तैयार हो जाता है और फसल तैयार हो जाने पर व्यापारी खुद आकर अच्छे दाम देकर मेंथा आयल ले जाते हैं।
बाराबंकी में बड़े पैमाने पर मेंथा की खेती

बाराबंकी में मेंथा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। आंकड़ों की अगर मानें तो बाराबंकी जिले के 75 परसेंट क्षेत्रफल में मेंथा की खेती की जाती है। बाराबंकी जिला पूरे उत्तर प्रदेश में अकेले 33% मेंथा आयल का उत्पादन करता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि मेंथा के ठंडे तेल को पैदा करने के लिए किसान मार्च से जून के बीच कड़ाके की धूप और तपन में खेती करता है। मेंथा के ठंडे तेल के पीछे किसान की मेहनत के बारे में जानकर आपको एसी में भी पसीना आ सकता है। मेंथा की खेती बहुत कठिन है और इसे करने के लिए अनुभव के साथ-साथ इच्छाशक्ति की भी बहुत जरूरत होती है। भरी दोपहर में जब लोग घरों से निकलने की हिम्मत नहीं कर पाते उस समय हम लोग भट्ठी झोंककर मेंथा ऑयल निकालते हैं। 45 से 48 डिग्री तापमान पर पूरी टंकी भरकर उसमें आग जलाकर तेल निकालते हैं जो लोगों में ठंडक पहुंचाता है।
मेंथा की खेती से अच्छा मुनाफा

खेती के जादूगर के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले बाराबंकी के किसान रामसरन वर्मा ने बताया कि बाराबंकी जिले में मेथा की खेती सबसे ज्यादा होती है। इस खेती में बहुत ज्यादा फर्टिलाइजर की जरूरत भी नहीं होती। इन्होंने बताया कि मेंथा की बुआई की प्रक्रिया फरवरी महीने में शुरू होती है। घोसी प्रजाति की मेंथा की खेती सबसे ज्यादा मुनाफा देती है। लगभग 90 दिनों के अंदर किसान मेंथा की खेती से ऑयल निकाल लेते हैं। रामसरन ने बताया कि मेंथा की खेती में किसी जंगली जानवर का डर नहीं होता, क्योंकि नह इसे खाते नहीं हैं। सिर्फ बाराबंकी जिले में 40 से करोड़ रुपए के मेंथा आयल की बिक्री होती है।

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