सरकार और अधिकारी कह रहे सरकारी अस्पतालों को बनाओ पेंशेंट फ्रेंडली,… तो क्या ऐसे बनेगा?
लाखें रुपए खर्च होने के बाद भी मरीजों को सुविधा न मिलने पर सीधा सवाल व्यवस्थाओं पर खड़ा होता है। साथ ही स्पष्ट होता है कि प्रबंधन मरीजों के प्रति कितना संजीदा। एक ओर सरकार और अतिरिक्त मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा विभाग शुभ्रा सिंह ने सरकारी अस्पतालों में पेंशेंट फ्रेंडली माहौल बनाने और पेशेन्ट सेन्ट्रिक एप्रोच पर जोर दे रहे हैं, लेकिन यहां ऐसी व्यवस्थाएं देख कम ही लगता है कि महात्मा गांधी चिकित्सालय भी पेंशेंट फ्रेंडली की डगर पर चल सकेगा।
ठिठुरन में कंपकपाए मरीज
प्रत्येक वर्ष की तुलना में इस वर्ष बांसवाड़ा में सर्दी ने भी खूब दंभ भरा। आमतौर पर कम सर्द स्थान के रूप में पहचाने जाने वाले बांसवाड़ा में भी इस वर्ष पारा 12 डिग्री से. के नीचे तक भी जाते नजर आया। शीतलहर और छाए बादलों ने हफ्तों छकाया सो अलग। ऐसे में भी इन मरीजों को आवश्कता अनुसार कंबल और चादर मुहैया कराने में प्रबंधन शत प्रतिशत सफल होता नजर नहीं आया।
06 माह में 14.6 लाख के धुले कपड़े
जुलाई 2022 से दिसंबर 2022 के बीच अस्पताल प्रबंधन की ओर से 14 लाख60 हजार 906 रुपए सिर्फ कपड़ों की धुलाई पर ही खर्च किए गए। इसमें चादर, कंबल, ड्रॉ शीट, एप्रिन, एब्डामन शीट, टॉवेल, ट्रॉली कवर आदि शामिल रहे।
खरीदी भी कम नहीं… 03 वर्ष में खरीदे 3000 चादर, 200 कंबल
एक ओर जहां प्रबंधन धुलाई में खूब पैसे खर्च कर रहा है वहीं, खरीदी में भी कोताहीं नहीं बरती जा रही है। सूत्रों की माने तो वर्ष 2021 से 2023 के बीच तकरीबन तीन हजार चादरों की, इस दौरान 200 कंबल की और 100 तकियों की भी खरीदी की गई। सूत्रों ने बताया कि कंबल और चादरें निर्धारित समयांतराल में डिस्पोज करने का प्रावधान है। अंदरखाने धुलाई और खरीदी में गड़बडिय़ों की बात भी सामने आ रही है।