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बांसवाड़ा

बल्ले-बल्ले, सब्जियां उगाकर खूब कमाई कर रहीं है बांसवाड़ा की जनजातीय महिलाएं

Banswara News : राजस्थान के बांसवाड़ा जिले की जनजातीय महिलाएं सब्जियां उगाकर खूब कमाई कर रहीं है। प्रतिदिन तकरीबन 1000 किलो तक सब्जियां बाहर के बाजारों में सप्लाई कर रही हैं। साथ ही परिवार को आर्थिक संबल भी दे रहीं हैं।

बांसवाड़ाDec 10, 2024 / 11:58 am

Sanjay Kumar Srivastava

Great Job Rajasthan Banswara Tribal Women are Earning a Lot by Growing Vegetables
Banswara News : सर्दी के इस मौसम में बांसवाड़ा का बाजार सब्जियों से लकदक है। बांसवाड़ा में बिकने वाली इन हरी सब्जियों की खास बात यह है कि इनकी पैदावार महिलाओं के बूते है। इतना ही नहीं इन कृषक महिलाओं के द्वारा ये सब्जियां सिर्फ बांसवाड़ा के बाजार में नहीं बल्कि उदयपुर, अहमदाबाद और रतलाम तक पहुंचती हैं। महिलाओं ने बताया कि अनुमानित तौर पर सर्दी के मौसम में बांसवाड़ा से प्रतिदिन तकरीबन 500 से 1000 किलो तक सब्जियां बाहर के बाजारों में भी भेजी जा रही हैं। कृषक महिलाएं पत्तेदार सब्जियों मसलन मेथी, पालक, धनिया, मूली इत्यादि पर विशेष फोकस करती हैं। इसके अलावा बैंगन, गिल्की और अन्य कुछ सब्जियां खेत पर करती हैं।

पैसों की आवक

बांसवाड़ा की जनजातीय महिलाओं ने बताया कि पत्तेदार सब्जियों में ज्यादा समय नहीं लगता 45 से 60 दिन में पनप जाती हैं। और एक पौधे से कई-कई बार पत्ते प्राप्त हो जाते हैं। इनकी खेती करना भी सहज होता है और हाथों-हाथ पैसा भी मिल जाता है।
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इन गांवों में होती है सब्जी की खेती

गागरी, उपला घंटाला, सूरापाड़ा, माहीडेम, निचला घंटाला की चरपोटा बस्ती, झरी, खेरडाबरा, कटियोर, सेवना, माकोद, घाटे की नाल एवं अन्य कई गांव।

इन सब्जियों की करते हैं खेती

पालक, मेथी, चने, सोया, तरोई, मिर्च, मूली, टमाटर, भिंडी, ग्वार फली, लौकी।

बरसों से कर रहीं सब्जियों की खेती

घाटा की नाल में खेतों में मेथी तोड़ती केसर निनामा ने बताया कि वो बीते तकरीबन 25 वर्षों से सब्जी की खेती करती आ रही हैं। उन्होंने बताया कि वैसे तो अधिकांश काम वो ही करती हैं, लेकिन सब्जियों को तोडऩे और अन्य छोटे मोटे कामों में घर के बच्चे और परिवार के सदस्य काम में हाथ बटा देते हैं।

चने की खेती से दोहरा लाभ

चने की खेती करने वाली कुछ महिला कृषकों ने बताया कि वे कई वर्षों से चने की खेती करती आ रही हैं। लेकिन वो चने के पकने तक का इंतजार नहीं करतीं। बल्कि जब पौधे छोटे होते हैं तो उनके पत्ते को बतौर भाजी बेचती हैं। जब पौधों पर चने लग जाते हैं तो हरे चने की बिक्री भी करती हैं।

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