पैसों की आवक
बांसवाड़ा की जनजातीय महिलाओं ने बताया कि पत्तेदार
सब्जियों में ज्यादा समय नहीं लगता 45 से 60 दिन में पनप जाती हैं। और एक पौधे से कई-कई बार पत्ते प्राप्त हो जाते हैं। इनकी खेती करना भी सहज होता है और हाथों-हाथ पैसा भी मिल जाता है।
इन गांवों में होती है सब्जी की खेती
गागरी, उपला घंटाला, सूरापाड़ा, माहीडेम, निचला घंटाला की चरपोटा बस्ती, झरी, खेरडाबरा, कटियोर, सेवना, माकोद, घाटे की नाल एवं अन्य कई गांव।
इन सब्जियों की करते हैं खेती
पालक, मेथी, चने, सोया, तरोई, मिर्च, मूली, टमाटर, भिंडी, ग्वार फली, लौकी।
बरसों से कर रहीं सब्जियों की खेती
घाटा की नाल में खेतों में मेथी तोड़ती केसर निनामा ने बताया कि वो बीते तकरीबन 25 वर्षों से सब्जी की खेती करती आ रही हैं। उन्होंने बताया कि वैसे तो अधिकांश काम वो ही करती हैं, लेकिन सब्जियों को तोडऩे और अन्य छोटे मोटे कामों में घर के बच्चे और परिवार के सदस्य काम में हाथ बटा देते हैं।
चने की खेती से दोहरा लाभ
चने की खेती करने वाली कुछ महिला कृषकों ने बताया कि वे कई वर्षों से चने की खेती करती आ रही हैं। लेकिन वो चने के पकने तक का इंतजार नहीं करतीं। बल्कि जब पौधे छोटे होते हैं तो उनके पत्ते को बतौर भाजी बेचती हैं। जब पौधों पर चने लग जाते हैं तो हरे चने की बिक्री भी करती हैं।