बेंगलूरु. राजस्थान पत्रिका और वर्धमान स्थानकवासी जैन महिला मंडल हनुमंतनगर की ओर से हनुमंतनगर स्थित जैन भवन में अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर महिलाओं ने कविता, राजस्थानी गीत व महिलाओं की पीड़ा को इंगित करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत णमोकार मंत्र से हुई। बेंगलूरु में शिक्षा व रोजगार के अवसर अन्य शहरों से बेहतर हुए हैं। उपस्थित महिलाओं ने बच्चों को पढ़ाने व उच्च शिक्षा पर जोर दिया। नारी फाउंडेशन है हर घर परिवार का और समाज का भी। कार्यक्रम की शुरुआत में मंडल की अध्यक्ष मंजू बालिया ने स्वागत किया। इसके पश्चात कार्यक्रम शुरू हुआ। पिंकी मूथा ने कहा कि अब काफी बदलाव आया है। अब बच्चों को ज्यादा पढ़ाया जाता है। इससे बच्चों का भविष्य सुरक्षित है। खासकर बालिकाओं को पढ़ाया जाना चाहिए। बच्चियां मां को निर्णय लेने में मदद करती हैं। उन्होंने कहा कि बालिका शिक्षा के प्रति समाज में खासा बदलाव आया है। प्रेमलता गोटावत ने कहा कि अपने पति के साथ व्यवसाय में साथ निभाती हूं। उन्होंने कहा कि बालिका शिक्षा के चलते आज मेरी बेटी सक्षम है। वह मुझे हर कार्य की सलाह भी देती है। आज स्वयं को कम पढऩे का मलाल है। बेटी घर व व्यवसाय में बराबर संतलन बिठाती है। किरण संचेती ने अपनी बेटी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि बेटी अपने पति की मृत्यु के बाद उनका पूरा व्यवसाय संभाल रही है। यहां तक की वह मुझे भी हिम्मत देती है। अब उसका पुर्नविवाह करने के बारे में सोच रहे हैं। उषा ने अपनी बेटी के बारे में जानकारी दी। उन्होंने अपनी बेटी की मृत्यु का घटनाक्रम भी बताया। उन्होंने कहा कि आज उनके बच्चे उनके लिए बड़ा सहारा बने हैं। मंडल की पूर्व अध्यक्ष व मार्गदर्शिका प्रभा गुलेच्छा ने कहा कि दोनों बेटे व बहुएं अपना दायित्व बहुत अच्छे से निभा रहे हैं। उन्होंने कहा मेरे बेटियां नहीं है पर मेरी बहुएं ही बेटियां हैं। उन्होंने अपनी बहुओं को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने से भी गुरेज नहीं किया। उन्होंने बेटियों के संस्कार पर बल दिया।
मंडल की अध्यक्ष मंजू बालिया ने कहा कि राजस्थान पत्रिका समग्र समाचार पत्र है। इसमें न केवल धर्म की शिक्षा मिलती है। बल्कि देश दुनिया की खबरों के साथ संतों के प्रवचन भी घर बैठे पढऩे को मिल जाते हैं। संगीता बोथरा ने बहुओं को बटियों की तरह रखने पर एतराज जताया। उन्होंने कहा कि बेटियों को पराया धन कहा जाता है। बहू को बहू ही समझना चाहिए। क्योंकि बहू को बेटी समझेंगे तो बेटी तो पराया धन होती है। एक दिन उसे शादी होने के बाद जाना पड़ता है। बहू को घर की लक्ष्मी समझना चाहिए। ताकि लक्ष्मी को घर में ससम्मान रखा जा सके। बहू को लक्ष्मी समझेंगे तो आए दिन होने वाले तलाक पर रोक लग सकती है। उन्होंने कविता भी प्रस्तुत की। शर्मिला गुणावत ने कहा कि महिला होना ही सबसे अच्छी बात है। महिला अच्छे घर की सच्ची सलाहकार भी है। महिला सभी परेशानियों का समाधान करने वाली भी है। बच्चों से लेकर पति की समस्या का समाधान करने वाली एकमात्र नारी ही है। लीला नाहर ने कहा कि दोनों बच्चे उनका ख्याल रखते हैं। मैं शिक्षा की उपायोगिता समझती हंू। दोनों बच्चे मेरी आंखों के तारे हैं। पहले बालिका शिक्षा पर जोर नहीं था। अब बालिका शिक्षा पर पूरा फोकस किया जा रहा है। मंजू मेहता ने कहा कि मायके को भुलाए नहीं भूल सकती हूं। उन्होंने अपने त्याग के बारे में बताया। उनका कहना था कि मां की तबियत खराब होने के कारण उन्होंने अपनी शादी विलम्ब से की। भाई की शादी होने के बाद भाभी को घर का काम समझाया और फिर शादी के लिए हां की। निधि का कहना है कि बालिका उच्च शिक्षा लेने के बावजूद अपने संस्कारों को नहीं भूले। करियर भी जरूरी है लेकिन करियर की आड़ में हम संस्कारों को नहीं भूलें। कार्यक्रम का समापन पर महिलाओं ने शानदार काव्य रचना प्रस्तुत कर माहौल का रंग बदल दिया। इस अवसर पर महिलाओं ने छोटी सी उम्र….राजस्थानी गीत प्रस्तुत किया। हंसते-हसते कट जाएं रास्ते, जिन्दगी यूं ही चलती रहे। खुशी मिले या गम बदलेंगे ना हम गीत प्रस्तुत किया। महिलाओं ने इस अवसर पर शानदार गीतों की प्रस्तुति देकर माहौल को खुशनुमा बना दिया। इस अवसर पर सम्पादकीय प्रभारी कुमार जीवेन्द्र झा, सहायक महाप्रबंधक जगदीश कंडिरा, योगेश शर्मा, संतोष पांडेय व वितरण प्रबंधक रमेश चौधरी उपस्थित थे।