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बैंगलोर

विकास के लिए बाजार से धन जुटाने में पिछड़ रहे हैं शहरी निकाय

म्युनिसिपल बॉन्ड: २५ साल में छह हजार करोड़ से कम की राशि ही निकायों ने जुटाई
 

बैंगलोरNov 26, 2022 / 11:58 pm

Jeevendra Jha

share market

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बेंगलूरु. देश के महानगर ही नहीं, छोटे शहर भी विकास की बयार में तेजी से बदल रहे हैं। लेकिन, विकास कार्यों और जनसुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए शहरी निकाय बाजार से धन जुटाने में पिछड़ रहे हैं। अधिकांश शहरी निकाय संपत्ति कर जैसे राजस्व के परंपरागत संसाधनों और केंद्र अथवा राज्य सरकार के अनुदान पर निर्भर हैं।
स्थानीय निकायों को वित्तीय तौर पर मजबूत बनाने और सरकारी अनुदानों पर उनकी निर्भरता को कम करने के लिए म्युनिसिपल बॉन्ड की व्यवस्था शुरू हुई थी। इसमें कोई भी शहरी निकाय पूंजी बाजार के माध्यम से धन जुटा सकता है। लेकिन, २५ साल बाद भी कुछ चुनिंदा निकाय ही म्युनिसिपल बॉन्ड के माध्यम से धन जुटा सके हैं। विकसित देशों की तुलना में म्युनिसिपल बॉन्ड देश में न तो निकायों को लुभा रहा है और न ही निवेशकों को।
बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के पूर्ववर्ती अवतार बेंगलूरु नगर निगम (बीएमसी) ने देश में सबसे पहले म्युनिसिल बॉन्ड जारी किया था। १९९७ मेें जारी किए गए इस बॉन्ड से बीएमसी ने बाजार से १२५ करोड़ रुपए जुटाए थे। लेकिन, ढाई दशक बाद भी इस बॉन्ड से देश के शहरी निकायों ने छह हजार करोड़ रुपए से कम की राशि ही जुटाई है। १९९८ में म्युनिसिपल बॉन्ड जारी करने वाला अहमदाबाद नगर निगम देश का दूसरा शहरी निकाय था। इसके बाद म्युनिसिपल बॉन्ड का देसी बाजार २००० के दशक के मध्य तक तेजी से बढ़ा। इस दौरान ९ शहरी निकायों ने १२०० करोड़ रुपए बॉन्ड के जरिए जुटाए मगर वर्ष २००५ के बाद बॉन्ड जारी करने की प्रक्रिया धीमी पड़ गई।
केंद्र सरकार भी दे रही प्रोत्साहन

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक हाल के वर्षों में म्युनिसिपल बॉन्ड जारी करने की प्रक्रिया में फिर से तेजी आई है। वर्ष २०१७ से २०२१ के बीच नौ शहरी निकायों ने ३८४० करोड़ रुपए बॉन्ड के जरिए जुटाए हैं। इस बॉन्ड को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार भी अमृत योजना के तहत प्रति १०० करोड़ रुपए की राशि पर १३ करोड़ रुपए प्रोत्साहन अनुदान निकायों को देती है। इस बॉन्ड के जरिए अभी तक सबसे अधिक दो हजार करोड़ रुपए की राशि वर्ष २०१८ में आंध्र प्रदेश राजधानी क्षेत्र विकास ने जुटाई थी।शहरी स्थानीय निकायों के अलावा जलापूर्ति और स्वच्छता आदि से जुड़े सरकार निकाय भी इस बॉन्ड से धन जुटा सकते हैं। अभी तक २४ शहरी निकायों और जनसुविधाओं से जुड़े सरकारी उपक्रमों ने ३८ म्युनिसिपल बॉन्ड से ५९०१.५ करोड़ रुपए रुपए की राशि जुटाई है। दोबारा बॉन्ड जारी करने वाले शहरी निकायों की संख्या काफी कम है। अहमदाबाद नगर निगम ने पांच बार बॉन्ड जारी कर ५५८ करोड़ रुपए जुटाए तो दो-दो बार में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम ने ४९८ करोड़, मदुरै नगर निगम ने ५१.२ करोड़, नासिक ने १५० करोड़ और वडोदारा ने २७० करोड़ रुपए जुटाए।
पिछले २५ साल में २०१८ में सबसे अधिक २७१० करोड़ की राशि म्युनिसिपल बॉन्ड से जुटाई गई थी। २०१९ में ५०० करोड़, २०२० में २०० करोड़ और २०२१ में १५० करोड़ रुपए इस बॉन्ड से शहरी निकायों ने जुटाए।
द्वितीय बाजार में हो कारोबार तो बढ़े आकर्षण

आरबीआई ने शहरी निकायों को व्यवहार्य वित्त पोषण प्रदान करने के लिए म्युनिसिपल बॉन्ड जारी करने के पैमाने को बढ़ाने और द्वितीयक बाजार में इन बॉन्डों के कोराबार को अनुमति देने की सिफारिश की है। आरबीआई ने कहा कि म्युनिसिपल बॉन्ड को शेयर बाजार में सूचीबद्ध किए जाने से शहरी निकायों के लिए धन जुटाना आसान होगा। आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक तकनीक सुविधाओं की कमी के कारण छोटे शहरी निकायों के लिए बॉन्ड के माध्यम से धन जुटाना मुश्किल होता है। ऐसे निकायों के लिए पूल्ड फाइनेंसिंग का तरीका अपनाया जा सकता है जिसमें कई निकायों को मिलाकर एक साथ बॉन्ड जारी किया जाता है। करीब १५ सरकारी निकायों ने पूल्ड फाइनेंसिंग से म्युनिसिपल बॉन्ड के जरिए धन जुटाया है।
वित्तीय पारदर्शिता भी जरूरीजानकारों का कहना है कि स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति को लेकर अस्पष्टता के कारण भी म्युनिसिपल बॉन्ड को लेकर आकर्षण कम रहता है। आरबीआई रिपोर्ट के अनुसार २०१८ में जिन ९८ शहरी निकायों की क्रेडिट रैकिंग की गई थी उनमें से मात्र ५९ प्रतिशत को ही निवेश या उससे अधिक का ग्रेड मिला था। बैंकों या केंद्र सरकार के बॉन्ड की तुलना में अधिक ब्याज दर के बावजूद अत्यधिक जोखिम और छोटे आकार के कारण निवेशक ज्यादा आकर्षक नहीं होते हैं।
कब कितने बांड
वर्ष संख्या राशि
1997 1 125
1998 1 100
1999 2 110
2000 1 110
2001 2 80
2002 3 180.4
2003 3 174.5
2004 3 240
2005 4 298.5
2007 1 21.2
2008 1 6.7
2010 3 513.2
2012 1 51
2013 1 51
2017 2 280
2018 4 2710
2019 3 500
2020 1 200
2021 1 150
राशि करोड़ रुपए में

स्थानीय शहरी निकायों के लिए राजस्व के बेहतर स्त्रोत विकसित करने के साथ ही वित्तीय प्रबंधन को अधिक सुदृढ़ करने की जरूरत है। सभी राज्यों में शहरी निकायों के लिए आबादी, क्षेत्रफल और विकास की जरूरतों के आधार पर धन आवंटन के लिए एक समान नीति अपनाई जानी चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों को जीएसटी का एक निश्चित हिस्सा शहरी और देहाती स्थानीय निकायों को देना चाहिए। साथ ही पारदर्शी लेखा व्यवस्था को अपनाकर शहरी निकाय बॉन्ड बाजार से अधिक आसानी से धन जुटा सकेंगे।
– एनएम शेषाद्रि, वित्त विशेषज्ञ

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