प्रताडि़त प्रकृति भी अभिशाप देती है-आचार्य देवेन्द्र सागर
प्रताडि़त प्रकृति भी अभिशाप देती है-आचार्य देवेन्द्र सागर
बेंगलूरु. राजस्थान जैन मूर्तिपूजक संघ जयनगर में विराजित आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने कहा कि मनुष्य द्वारा प्रताडि़त प्रकृति भी प्राकृतिक प्रकोप के रूप में अपना अभिशाप देती है। कभी बाढ़, भूचाल या कभी तूफान के रूप में पकृति के पांच तत्व कहर ढाते हैं। कोरोना जैसी महामारी भी मनुष्य के कारण ही है। मानव की अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए की गई सामूहिक हिंसा या निर्दयी आचरण का यह बुरा नतीजा है।
लोग संकट के समय ईश्वर से दुआ मांगते हैं। संत, महात्मा और प्रियजन भी अन्य के सुख, शांति, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य के लिए दुआ करते हैं। खास कर इस कोरोना काल में दुआओं का महत्व अधिक महसूस हुआ है। इस महामारी से पीडि़तों को दवाओं के साथ-साथ अपने परिजनों, समाज और परमात्मा से दुआएं चाहिए, ताकि उनका हौसला और मनोबल बढ़े। पीडि़तों में नकारात्मक तत्वों से लडऩे की सकारात्मक इच्छा शक्ति प्रबल हो जाए।
असल में अच्छी नीयत, सुखदाई कर्म और निस्वार्थ सेवा से इंसान अपने लिए दुआ कमाता है। मांगने की जरूरत नहीं पड़ती, यह आशीर्वाद अपने-आप मिल जाता है, चाहे वे इसे मांगे या न मांगे। मनुष्य श्रेष्ठ कर्म करता है, तो दुआओं का अधिकारी अपने-आप बन जाता है। इसे ही कर और पा यानी कृपा कहते हैं। इससे अंतरात्मा स्वस्थ, शक्तिशाली और सकारात्मक बन जाती है। श्रेष्ठ कर्म रूपी बगिया में जीवन हरा भरा और खुशहाल हो जाता है। अंत में आचार्य ने कहा कि जीवन के कर्म रूपी खेत में जैसे बीज बोएंगे, वैसा ही फल पाएंगे। दुख-दर्द के कांटे बोएंगे, तो कांटे ही नसीब होंगे। सुख-शांति के मीठे फल-फूल लगाएंगे, तो स्वयं और दूसरों को भी खुशी दे पाएंगे। यह नियति का नियम है। इसलिए सदा स्वस्थ, सुखी, निर्भय और सुरक्षित रहने के लिए अपने इरादे और भावनाओं को हमेशा सबके लिए शुभ, शुद्ध और मंगलकारी रखें। सभी का जीवन मंगलमय हो, कभी कोई दुख के भागी न बनें। इन कल्याणकारी शुभ भावना और शुभकामनाओं में असीम शक्ति है।
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