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बैंगलोर

गौरी लंकेश हत्याकांड में तीन और आरोपियों की जमानत

न्यायमूर्ति एस. विश्वजीत शेट्टी ने तीन आरोपियों – अमित दिगवेकर (38), जिन्हें आरोपी नंबर 5, सुरेश एचएल (40), आरोपी नंबर 7 और केटी नवीन कुमार (43), आरोपी संख्या 17 को जमानत दे दी। तीनों याचिकाकर्ताओं ने नायक को जमानत देने के अपने फैसले में अदालत द्वारा बताए गए कारणों पर भरोसा करते हुए मुकदमे में देरी के एक ही आधार पर जमानत मांगी थी।

बैंगलोरJul 16, 2024 / 11:58 pm

Sanjay Kumar Kareer

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बेंगलूरु. हाई कोर्ट ने मंगलवार को गौरी लंकेश हत्याकांड के तीन और आरोपियों को जमानत दे दी। गौरी लंकेश की 5 सितंबर 2017 को उनके आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। अदालत ने दिसंबर 2023 में एक अन्य आरोपी मोहन नायक एन. को जमानत दे दी थी, जिसे आरोपी नंबर 11 के तौर पर पेश किया गया है। इस आधार पर कि उसकी कोई गलती नहीं होने के बावजूद मुकदमे में देरी हुई है और यह जल्द ही पूरा नहीं हो सकता है।
न्यायमूर्ति एस. विश्वजीत शेट्टी ने तीन आरोपियों – अमित दिगवेकर (38), जिन्हें आरोपी नंबर 5, सुरेश एचएल (40), आरोपी नंबर 7 और केटी नवीन कुमार (43), आरोपी संख्या 17 को जमानत दे दी। तीनों याचिकाकर्ताओं ने नायक को जमानत देने के अपने फैसले में अदालत द्वारा बताए गए कारणों पर भरोसा करते हुए मुकदमे में देरी के एक ही आधार पर जमानत मांगी थी।
याचिकाकर्ता-आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश के अपराध और कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (केसीओसीए) 2000 के प्रावधानों के तहत भी आरोप लगाए गए थे। नवीन की पहली जमानत याचिका को अदालत ने पहले खारिज कर दिया था। इन तीनों को 2018 में गिरफ्तार किया गया था।
दिसंबर 2023 में नायक को जमानत देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि पिछले दो वर्षों में 527 आरोप-पत्र गवाहों में से केवल 90 की ही जांच की गई थी। हालांकि, अब इन तीनों आरोपी-याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं द्वारा न्यायालय के संज्ञान में लाया गया है कि कुल 527 गवाहों में से अब तक केवल 130 गवाहों की ही जांच की गई है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला

आरोपी नवीन का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता अरुणा श्याम एम. ने सर्वोच्च न्यायालय के हाल ही के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि राज्य या संबंधित न्यायालय सहित किसी अभियोजन एजेंसी के पास संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अभियुक्त के त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार को प्रदान करने या उसकी रक्षा करने का कोई साधन नहीं है, तो राज्य या किसी अन्य अभियोजन एजेंसी को इस आधार पर जमानत की याचिका का विरोध नहीं करना चाहिए कि किया गया अपराध गंभीर है।

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