जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने भाजपा विधायक बसनगौड़ा पाटिल यत्नाल और कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली सीबीआई की दो याचिकाओं पर सुनवाई की। हाई कोर्ट ने याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस मामले को केवल सुप्रीम कोर्ट ही संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत ही स्थगित कर सकता है क्योंकि यह एक राज्य और संघ के बीच विवाद था।
सुनवाई की शुरुआत में सीबीआई के वकील ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से पास-ओवर की मांग की। दूसरी ओर, कर्नाटक सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। ऐसे में खंडपीठ ने कहा कि वह मामले की सुनवाई किसी अन्य दिन नहीं करेगी।
हालांकि, सीबीआई के वकील ने पास-ओवर पर जोर देते हुए कहा कि अंतरिम आदेश पारित करने की आवश्यकता हो सकती है। इस बिंदु पर जस्टिस कांत ने वकील से पूछताछ की कि किस तरह का अंतरिम आदेश पारित किए जाने की उम्मीद है।
जवाब में यत्नाल की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट के. परमेश्वर ने कहा कि सीबीआई से वापस लिए जाने के बाद जांच को शरारतपूर्ण तरीके से लोकायुक्त को सौंप दिया गया, जिसने प्राथमिकी दर्ज की है। उन्होंने कहा कि अगर मामला बंद करने की रिपोर्ट दाखिल की जाती है, जिसकी पूरी संभावना है कि वे इसे दाखिल करेंगे, क्योंकि वह खुद कैबिनेट मंत्री हैं।
परमेश्वर की बात सुनकर जस्टिस कांत ने टिप्पणी की, क्या हम इतने शक्तिहीन हैं कि हम एक कार्यवाही को रद्द करने की घोषणा नहीं कर सकते हैं और दूसरे को जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते हैं? क्या आप हमें बताना चाहते हैं कि नियति को हम स्वीकार करेंगे? कर्नाटक सरकार को जवाबी हलफनामे दाखिल करने का निर्देश देते हुए अदालत ने सुनवाई 22 जनवरी तक स्थगित कर दी।