इसरो के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक मिशन लांच करने के बाद डॉकिंग तकनीक के परीक्षण में करीब 10 दिन लग जाएंगे। पहले दोनों उपग्रहों को एक ही रॉकेट पीएसएलवी सी-60 से पृथ्वी की निचली कक्षा में अलग-अलग स्थापित किया जाएगा। पहले दोनों उपग्रहों के बीच की दूरी अधिक होगी। फिर, उनके बीच की दूरी घटाकर 10 से 15 किमी किया जाएगा। तब, दोनों उपग्रहों को संतुलित किया जाएगा और उनका विचलन पूरी तरह नियंत्रित होगा। इस दौरान उनकी गति लगभग 8 किलोमीटर प्रति सेंकेड रहने का अनुमान है। दोनों उपग्रहों की तमाम प्रणालियों की जांच के बाद चेजर अंतरिक्षयान की गति बढ़ाई जाएगी और वह टारगेट से पहले 5 किमी और फिर 1.5 किमी की दूरी तक पहुंचेगा। अंतत: दोनों उपग्रह पास आएंगे और एक-दूसरे से जुडक़र एक यूनिट बन जाएंगे। यह तमाम प्रक्रिया बेहद नियंत्रित तरीके से पूरी की जाएगी।
उपग्रहों को टक्कर से बचाने और सहज संयोजन सुनिश्चित करने में नेविगेशन और कई तकनीकी प्रणालियां काम करेंगी। जुडऩे के बाद दोनों अंतरिक्षयान एक इकाई बन जाएंगे और एक इकाई के रूप में उनका परिचालन किया जाएगा। इस मिशन के लिए दोनों अंतरिक्षयानों का इंटीग्रेशन हैदराबाद स्थित एक निजी एयरोस्पेस एवं रक्षा कंपनी अनंत टेक्नोलॉजीज ने किया है। उपग्रहों का भार लगभग 400 किलोग्राम है। इसरो ने 2028 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की पहली इकाई और 2035 तक परिचालन योग्य एक अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण कई इकाइयों (अंतरिक्षयानों) को जोडक़र किया जाएगा जो डॉकिंग तकनीक से ही होगा। चंद्रयान-4 मिशन में इस तकनीक का कई बार प्रयोग होगा। चंद्रयान-4 के दो यूनिट अलग-अलग प्रक्षेपणयानों से लांच किए जाएंगे और उन्हें डॉकिंग तकनीक से पृथ्वी की कक्षा में जोडक़र चंद्रमा की ओर रवाना किया जाएगा। चंद्रमा की कक्षा में भी इस तकनीक का प्रयोग किया जाएगा।