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बैंगलोर

अंतरिक्ष में अलग होकर फिर एक-दूसरे से जुड़ेंगे दो भारतीय यान

इसरो करेगा स्पेस डॉकिंग परीक्षणभारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए अहम प्रयोग

बैंगलोरFeb 19, 2020 / 12:06 pm

Rajeev Mishra

अंतरिक्ष में अलग होकर फिर एक-दूसरे से जुड़ेंगे दो भारतीय यान

अंतरिक्ष में अलग होकर फिर एक-दूसरे से जुड़ेंगे दो भारतीय यान

बेंगलूरु.
मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान के बाद सतत मानव मिशन के लिए भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की दिशा में प्रयास शुरू हो गए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इस संदर्भ में एक अहम प्रयोग करने की तैयारी कर रहा है। यह प्रयोग स्पेस डॉकिंग से जुड़ा है जिसके तहत दो अंतरिक्षयान भेजकर उसे अंतरिक्ष में जोडऩे का परीक्षण होगा।
इस परीक्षण से हासिल तकनीक अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने और प्रस्तावित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के दृष्टिकोण से काफी अहम होगा। हालांकि, इस तकनीक का अंतिम उद्देश्य एक अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान में अंतरिक्षयात्रियों को स्थानांतरित करना है लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। दूसरा पहलू यह है कि ऑपरेशनल उपग्रहों का जीवनकाल लंबा करने के लिए धरती से एक अन्य अंतरिक्षयान भेजकर उसमें पुन: ईंधन भरने और आवश्यक तकनीक ट्रांसफर करने की तकनीक भी मिल जाएगी।
इसरो अध्यक्ष के.शिवन के अनुसार इस परीक्षण के दौरान इसरो एक ऐसा उपग्रह लांच करेगा जिसके दो घटक होंगे। लांचिंग के बाद अंतरिक्ष में पहुंचकर ये दोनों घटक अलग हो जाएंगे और फिर एक-दूसरे से जुड़कर एक हो जाएंगे। दोनों घटक जुडऩे के बाद एक पूर्ण ऑपरेशनल उपग्रह की तरह काम करेंगे। यह बेहद महत्वपूर्ण तकनीक (स्पेडएक्स) है। स्पेडएक्स परीक्षण से अंतरिक्षयानों के मिलान तकनीक से जुड़े अहम आंकड़े भी इसरो को मिलेंगे। यानी, अपनी-अपनी कक्षाओं में चक्कर काटते दो अंतरिक्षयान एक-दूसरे की तलाश कर एक-दूसरे के करीब आएंगे और फिर एक-दूसरे ससे जुड़कर एक ही कक्षा में ऑपरेशनल हो जाएंगे। यहीं तकनीक भविष्य में स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन का मार्ग प्रशस्त करेगा। स्पेडएक्स परीक्षण के लिए केंद्र सरकार ने अभी 10 करोड़ की राशि दी है लेकिन, इस परियोजना पर अभी काफी फंड की जरूरत होगी।
इस परीक्षण में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि दो अंतरिक्षयानों के जुडऩे की प्रक्रिया स्वचालित और और उसके बाद की अधिकांश प्रक्रियाएं रोबोटिक होंगी। इस दौरान दोनों अंतरिक्षयानों की गति नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि, दोनों अंतरिक्षयान जब जुडऩे के लिए एक-दूसरे के पास आएंगे तो टारगेटेड और चेजर अंतरिक्षयान दोनों की सापेक्ष स्थिति और वेग लगभग शून्य होना चाहिए। ताकि, एक दूसरे से भिड़े अथवा क्रैैश नहीं हों। इसके साथ ही दोनों अंतरिक्षयानों का सापेक्षिक कोणीय झुकाव बेहद सटीकता के साथ संरेखित होना चाहिए ताकि सहजता से जुड़ जाएं।
इसरो के तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में इस तकनीक पर काम हो रहा है। इसरो अध्यक्ष के अनुसार उपग्रह इस साल के मध्य तक तैयार हो जाएगा और उसके बाद से परीक्षणों का सिलसिला शुरू होगा। इस मिशन के लिए कई परीक्षण होंगे। उम्मीद है कि साल अंत तक स्पेडएक्स का यह महत्वपूर्ण परीक्षण हो जाएगा। कई प्रणालियां जैसे सिग्नल एनालिसस इक्विपमेंट, हाइ प्रेसिजन वीडियोमीटर फॉर नेविगेशन, डॉकिंग सिस्टम इलेक्ट्रोनिक्स आदि के विकास में इसरो ने प्रगति हासिल की है। हालांकि, स्पेस स्टेशन दीर्घकालिक योजना में है और इसरो का पूरा ध्यान अभी चंद्रयान-3, आदित्य एल-1 और गगनयान मिशनों पर हैं।

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