कोविड-19 के खिलाफ जंग में उतरे मिसाइल विज्ञानी
प्रमाणित मिसाइल तकनीक से तैयार हो रहे चिकित्सा उपकरण
कोविड-19 के खिलाफ जंग में उतरे मिसाइल विज्ञानी
बेंगलूरु.
आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। इस कहावत को चरितार्थ करते हुए रक्षा अुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के मिसाइल विज्ञानी आजकल घातक कोविड-19 से निपटने के लिए अपने अनुसंधान की दिशा बदल दिए हैं।
रणनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से कई अहम मिसाइल मिशनों को अंजाम देने वाले हैदराबाद स्थित एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल परिसर के शीर्ष विज्ञानी कोरोना वायरस से लडऩे के लिए ऐसे उपकरण तैयार करने में जुटे हैं जो चिकित्सा जगत के लिए अत्यंत कारगर साबित होंगे। चौतरफा लॉकडाउन के बीच रिसर्च सेंटर इमारत (आरसीआइ) में चुनिंदा वैज्ञानिकों का एक समूह युद्ध स्तर पर हेल्थकेयर उत्पाद तैयार कर रहा है। आपात जरूरतों के देखते हुए ये वैज्ञानिक औपचारिक मंजूरी का इंतजार तक नहीं कर रहे हैं। प्रयोगशाला निदेशकों द्वारा आवश्यक कोष के उपयोग की मंजूरी हासिल करने से पहले अपनी ही जेब से भी खर्च कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि कोविड-19 से लडऩे के लिए विकसित किए जा रहे इन उत्पादों में भारतीय मिसाइल प्रणाली और उप प्रणाली की तकनीकों का उपयोग हो रहा है।
कोविड-19 से लडऩे के लिए डीआरडीओ वैज्ञानिकों द्वारा विकसित उत्पादों के जो प्रोटोटाइप परीक्षण के दौर से गुजर रहे हैं या जो बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए भागीदार भारतीय उद्योगों तक पहुंच गए हैं उनमें प्रमुख हैं, पूरे चेहरे को ढंकने वाला मास्क (फूल फेस कवरिंग मास्क), वेंटिलेटर पम्प के लिए ब्रशलेस डीसी मोटर्स (जो मुख्य रूप से मिसाइल कंट्रोल और एक्ट्यूएटर्स के लिए उपयोग किया जाता है), हाइ रेस्पांस, सोलेनॉइड वाल्व (मिसाइल कंट्रोल) वेंटिलेटर पम्प आदि शामिल हैं। वहीं, स्थानीय उद्योग के साथ मल्टीप्लेक्स वेंटिलेशन सिस्टम के विकास का काम भी प्रगति पर है जिसे 2 से 4 रोगियों को एक साथ जोड़ा जा सकता है। मौजूदा वेंटिलेटर के लिए भी मल्टीप्लेक्सिंग एडॉप्टर आदि का विकास हो रहा है। टीम आरसीआइ के अलावा इस घातक वायरस से निपटने के लिए डीआरडीओ की अन्य प्रयोगशालाओं में बायो सूट और वेंटिलेटर तैयार किए जा रहे हैं।
डीआरडीओ चेयरमैन खुद कर रहे निगरानी
मिसाइल परिसर के सूत्रों के मुताबिक डीआरडीओ मुख्यालय ने इन उत्पादों की डिजाइन और बड़े पैमाने पर उत्पादन की प्रगति सुनिश्चित करने के लिए महानिदेशक (उत्पादन, सेवा एवं सहभागिता) जीएन आरव को तैनात किया है। डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ जी.सतीश रेड्डी स्वंय वैज्ञानिकों और औद्योगिक साझीदारों के साथ दिन में तीन से चार बार वीडियो कॉफ्रेंसिंग के जरिए बात करते हैं और की प्रगति की निगरानी करते हैं। आरसीआइ में तैनात टीम में मेकेनिकल, इलेक्ट्रोनिक और कंप्यूटर प्रणाली के माहिर युवा वैज्ञानिक शामिल हैं। तीन मुख्य और पांच सहयोगी टीमें पिछले दो सप्ताह से दिन-रात इस मिशन पर लगी हैं।
युवा टीम ने झोंक दी है ताकत
दस से बीस साल का अनुभव रखने वाली युवा वैज्ञानिकों की यह टीम कई मिसाइल मिशनों जैसे ए-सैट, हवाई प्रतिरक्षा मिसाइल, यूएवी, टारगेट मिसाइल, नाग, हेलिना, बी-05, के4 सहित, एंटी रेडिएशन मिसाइल सहित अन्य कई मिशनों पर काम कर चुके हैं। ये वैज्ञानिक मिसाइलों के विकास में प्रमाणित तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं ताकि तत्काल और समय सीमा के भीतर उत्पाद तैयार हो सकें। एक वैज्ञानिक ने बताया कि त्वरित डिजाइन और विकास का सबसे अच्छा उदाहरण है विस्को टाइप फेस मास्क जो तीन दिनों के भीतर तैयार हो गया। उत्पादों के विकास के लिए कई डिजाइन विकल्पों को आजमाया गया और डॉक्टरों की एक टीम द्वारा दिए गए सुझावों के बाद अंतिम उत्पाद जारी किया गया। मल्टीप्लेक्सिंग वेंटिलेशन सिस्टम की डिजाइन एक दिन में 14 अलग-अलग विकल्पों के साथ पूरी की गई। इसे उपयोग के लिए यूजर्स को दिया गया है। प्रोटोटाइप का मूल्यांकन कई शीर्ष अस्पतालों के डॉक्टरों ने किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि चुनौतियों और लॉकडाउन के कारण कई प्रतिबंधों के बावजूद टीम का हर सदस्य काफी उत्साहित है।
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