भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गुरुवार सुबह चौथे प्रयास में यह सफलता हासिल की। इस जटिल तकनीक के सफल परीक्षण से चंद्रयान-4 और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इस शानदार सफलता पर इसरो ने पूरे देश को बधाई दी है।
28800 किमी प्रति घंटे रफ्तार
अंतरिक्ष में लगभग 8 किमी प्रति सेकेंड (28,800 किमी प्रति घंटे) की रफ्तार से चक्कर काट रहे दो अंतरिक्षयानों को जोडऩा बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। इस मिशन को पूरा करने के लिए इन दोनों अंतरिक्षयानों को जोड़ा जाना था जिसमें पूर्ण कामयाबी मिल गई है। इसके लिए पिछले 30 सितम्बर को स्पेडेक्स मिशन के दो उपग्रहों स्पेडेक्स-01 और स्पेडेक्स-02 (चेजर और टारगेट) को लांच किया गया था। इसरो अधिकारियों के मुताबिक शून्य गुरुत्वाकर्षण में कम भार वाले उपग्रहों को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण होता है। स्पेडेक्स मिशन के तहत चेजर और टारगेट उपग्रहों का वजन 220-220 किग्रा है। डाकिंग के लिए दोनों उपग्रहों के एक सीध में आने के बाद बेहद नियंत्रित वेग के साथ दोनों अंतरिक्षयानों को एक-दूसरे से जोड़ा गया।
अंतरिक्ष में लगभग 8 किमी प्रति सेकेंड (28,800 किमी प्रति घंटे) की रफ्तार से चक्कर काट रहे दो अंतरिक्षयानों को जोडऩा बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। इस मिशन को पूरा करने के लिए इन दोनों अंतरिक्षयानों को जोड़ा जाना था जिसमें पूर्ण कामयाबी मिल गई है। इसके लिए पिछले 30 सितम्बर को स्पेडेक्स मिशन के दो उपग्रहों स्पेडेक्स-01 और स्पेडेक्स-02 (चेजर और टारगेट) को लांच किया गया था। इसरो अधिकारियों के मुताबिक शून्य गुरुत्वाकर्षण में कम भार वाले उपग्रहों को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण होता है। स्पेडेक्स मिशन के तहत चेजर और टारगेट उपग्रहों का वजन 220-220 किग्रा है। डाकिंग के लिए दोनों उपग्रहों के एक सीध में आने के बाद बेहद नियंत्रित वेग के साथ दोनों अंतरिक्षयानों को एक-दूसरे से जोड़ा गया।
इसट्रैक से पूरी की गई तमाम प्रक्रियाएं
उपग्रहों को पहले 470 किमी वाली धरती की ऊपरी कक्षा में स्थापित किया गया जहां ये 20 किमी की दूरी पर चक्कर लगा रहे थे। उनके बीच की दूरी को धीरे-धीरे घटाकर एक-दूसरे के करीब लाया गया जिसके बाद दोनों अंतरिक्षयानों को जोड़ा गया और उसके बाद दोनों एक यूनिट बन गए। यह तमाम प्रक्रिया बेंगलूरु स्थित इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग एवं कमांड नेेटवर्क (इसट्रैक) से पूरा किया गया।
उपग्रहों को पहले 470 किमी वाली धरती की ऊपरी कक्षा में स्थापित किया गया जहां ये 20 किमी की दूरी पर चक्कर लगा रहे थे। उनके बीच की दूरी को धीरे-धीरे घटाकर एक-दूसरे के करीब लाया गया जिसके बाद दोनों अंतरिक्षयानों को जोड़ा गया और उसके बाद दोनों एक यूनिट बन गए। यह तमाम प्रक्रिया बेंगलूरु स्थित इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग एवं कमांड नेेटवर्क (इसट्रैक) से पूरा किया गया।