सभी उतावले, पहले जाने को बेचैन
उन्होंने कहा कि बिहार मूल का होने और झारखंड में भी सेवाएं देने के कारण उन्हें हर जिले के बारे में जानकारी है। इसलिए मास्टर लिस्ट देखकर यह तय करना आसान होता है कि किसे किस ट्रेन में भेजना है। केवल श्रमिक ही नहीं, बल्कि छात्र, चिकित्सा के लिए आए अथवा पारिवारिक समारोह या व्यक्तिगत तौर पर मिलने आए लोग भी फंसे हुए हैं। इसलिए बिहार-झारखंड की ओर जाने वाली हर ट्रेनों में 80 से 85 फीसदी मजदूर और बाकी 10 से 15 फीसदी अन्य लोगों को भेजा जा रहा है। हर कोई उतावला है और पहले जाना चाहता है लेकिन समझाने पर लोग बात मान भी रहे हैं। यह काफी चुनौतीपूर्ण है। क्योंकि वे मात्र एक कड़ी है। इस अभियान में बीबीएमपी, रेलवे, पुलिस, स्वास्थ्य विभाग बीएमटीसी आदि भी जुड़े हैं।
दरअसल, बिहार-झारखंड के लोगों को लगता है कि सीमांत सिंह ही उनकी मदद कर सकते हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने बड़े पैमाने पर सड़क पर उतरने को उतावले हो रहे मजदूरों राहत सामग्री पहुंचाकर रोका। अब राज्य सरकार ने बिहार-झारखंड के प्रवासी मजदूरों को वापस भेजने के लिए उन्हें नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। हेमंत सोरेन ने सीमांत सिंह से कहा कि दोनों राज्यों की सरकारें एक-दूसरे के संपर्क में है। फिर भी अगर व्यक्तिगत तौर पर उन्हें कोई सुझाव देना हो या किसी तरह के सपोर्ट की जरूरत हो तो बताएं।