दरअसल, एस सोमनाथ के कार्यकाल के दौरान कोरोना की चुनौतियों के बावजूद इसरो ने कुल 17 लांच मिशन पूरे किए। इसी अवधि में एक नए रॉकेट एसएसएलवी का विकास हुआ जो लघु उपग्रहों के प्रक्षेपण में बेहद उपयोगी साबित होगा। सोमनाथ की अध्यक्षता के दौरान ही, भारत ने अगले दो दशक के अंतरिक्ष कार्यक्रमों की रूपरेखा तय की। वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण, शुक्र मिशन, चंद्रयान-4 और चंद्र मिशनों की शृंखला के अलावा अगली पीढ़ी के प्रक्षेपणयान एनजीएलवी के विकास समेत कई नई परियोजनाओं की नींव पड़ी।
दो प्रक्षेपणयानों पीएसएलवी और जीएसएलवी के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले सोमनाथ ने कहा कि, जीएसएलवी के विकास से उन्हें काफी खुशी मिली। सेवानिवृत्ति के बाद की योजना पर उन्होंने कहा कि, बच्चों के मार्ग निर्देशन के अभियान को आगे बढ़ाएंगे। बच्चे देश का भविष्य हैं और उन्हें सही राह दिखाना हम सभी की जिम्मेदारी है। कौशल विकास मंत्रालय और युवा मामलों के मंत्रालय की ओर से इस तरह का एक कार्यक्रम दिल्ली में किया जा रहा है जिसमें उनकी भूमिका होगी। तीन साल के कार्यकाल के दौरान सोमनाथ स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से भी गुजरे। उन्हें कैंसर जैसी घातक बीमारी से तब जूझना पड़ा जब आदित्य एल-1 मिशन लांच हो रहा था। लेकिन, वह जल्द स्वस्थ होकर लौटे और इसरो में अपने कर्तव्यों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता दिखाई। अब वह बच्चों के मार्ग निर्देशन का कार्य एक मिशन की तरह करना चाहते हैं।