वहीं, पार्टी के कुछ नेता जद-एस के साथ गठबंधन को लेकर भी खुश नहीं है। उनका कहना है कि, केंद्रीय नेतृत्व एचडी कुमारस्वामी को जरूरत से ज्यादा तवज्जो देने लगा है। हालात, अब यह हो गई है कि, भाजपा नेता आलाकमान तक अपनी बात पहुंचाने के लिए एचडी कुमारस्वामी को माध्यम बनाने लगे हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि, केंद्रीय नेतृत्व जद-एस को इतना महत्व दे रहा है जैसे राज्य में भाजपा की पकड़ उन्हीं के बदौलत है। भाजपा नेताओं के भीतर जद-एस के प्रति असंतोष के ये सुर गठबंधन के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।
दरअसल, चन्नपट्टण से चुनाव जीतने वाले कांग्रेस उम्मीदवार सीपी योगेश्वर भाजपा की टिकट पर चुनाव लडऩा चाहते थे। अब, भाजपा के कुछ नेता योगेश्वर को टिकट नहीं देने के निर्णय को पार्टी की नाकामी बता रहे हैं। योगेश्वर यहां से पांच बार चुनाव जीत चुके हैं और कुमारस्वामी को उन्होंने पिछले चुनाव में भी कड़ी टक्कर दी थी। वे स्थानीय मतदाताओं में लोकप्रिय हैं और उनका जमीनी जुड़ाव काफी गहरा है। कांग्रेस ने उन्हें टिकट देकर चन्नपट्टण का माहौल अपने पक्ष में कर लिया। यहां जद-एस अपने पारंपरिक मतदाता आधार पर बहुत अधिक निर्भर था और योगेश्वर के कांग्रेस के साथ आने के बाद उसका मुकाबला नहीं कर सका। यह जमीनी स्तर पर जद-एस के घटते जुड़ाव को उजागर करता है। निखिल कुमारस्वामी का हार न सिर्फ उनके राजनीतिक भविष्य के लिए बल्कि क्षेत्रीय पार्टी के लिए भविष्य में चीजें और कठिन होने के संकेत हैं। ये वोक्कालिगा हार्टलैंड में जद-एस का प्रभाव कम होने के भी संकेत हैं।
संडूर में भाजपा को उलटफेर का विश्वास था लेकिन, कांग्रेस अपने मजबूत गढ़ को बचाने में सफल रही। वाल्मीकि निगम घोटाले के केंद्र बल्लारी में भाजपा ने बंगारु हनुमंत को उम्मीदवार बनाया जो इस मुद्दे को लेकर लगातार हमलावर थे। लेकिन, कांग्रेस को अपनी जमीनी ताकत और संगठन का फायदा मिला। बंगारु हनुमंत को कांग्रेस ने बाहरी उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जनार्दन रेड्डी के खिलाफ भी जमकर प्रचार किया।
तीनों क्षेत्रों में मिली हार के बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजयेंद्र की चुनौती बढ़ेगी। आंतरिक असंतोष से जूझ रही भाजपा में अब उम्मीदवारों के चयन और भाजपा-जद-एस गठबंधन को लेकर भी सवाल उठेंगे। विजयेंद्र पर वंशवाद का आरोप पार्टी के भीतर से ही लगता रहा है। कार्यकर्ताओं ने पार्टी नेतृत्व के फैसले पर असंतोष जताया है जिससे भाजपा की संगठनात्मक एकता और कमजोर हुई है। वक्फ संपत्तियों के विवाद और कथित भूमि-हथियाने जैसे मुद्दों को उजागर करने के प्रयास के बावजूद, भाजपा प्रभावी ढंग से मतदाताओं को एकजुट नहीं कर सकी।
कांग्रेस के लिए उपचुनाव के नतीजे आत्मविश्वास बढ़ाने वाले साबित होंगे। विवादों में घिरी सिद्धरामय्या की सत्ता अब और मजबूत होगी। शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष के हमलों को कुंद करने का उसे मजबूत हथियार मिला है। इस जीत का श्रेय उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या को दिया है लेकिन, आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर क्या हलचल होती है यह देखना होगा। बेंगलूरु ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र में मिली हार के बाद चन्नपट्टण की जीत डीके शिवकुमार की वोक्कालिगा बेल्ट में आत्मविश्वास बढ़ाने वाली है।