विशेषज्ञों का कहना है कि हवाई अड्डों का नामकरण करने का फैसला उचित निर्णय है। इससे राज्य के लोग और विशेषकर नई पीढ़ी को अपने ऐतिहासिक महापुरुषों का इतिहास जानने का मौका मिलेगा। ऐसी पहल क्षेत्रीय संस्कृति और इतिहास से जोड़ती है। साथ ही न सिर्फ स्थानीय बल्कि बाहरी लोगों को भी गुममान हस्तियों और अन्य प्रकार के इतिहास की जानकारी मिलती है। यह किसी भी क्षेत्र की संस्कृति और गौरवशाली विरासत का स्मरण कराता है।
हवाई अड्डों का नामकरण करना विवादों से जुड़ा मसला हो सकता है। जब बेंगलूरु हवाई अड्डे का नामकरण केंपेगौड़ा के नाम पर करने का निर्णय हुआ था उस समय भी ऐसा ही विवाद हुआ था। प्रख्यात साहित्यकार एवं कलाकार दिवंगत गिरीश कर्नाड ने तब टीपू सुल्तान के नाम पर बेंगलूरु हवाई अड्डे का नामकरण करने का सुझाव दिया था। उनका कहना था कि हवाई अड्डा दोड्डबलापुर में है जहां टीपू का जन्म हुआ था और वे कर्नाटक के एक महान शासक रहे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। हालांकि कर्नाड के सुझाव पर तब कई कन्नड़ संगठनों और वोक्कालिगा संगठनों ने आपत्ति जताई थी। इसी प्रकार मैसूरु हवाई अड्डे का नामकरण पूर्ववर्ती शासक वाडियार के नाम पर करने का सुझाव पहले भी आया है लेकिन उस पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताते हुए टीपू के नाम पर हवाई अड्डे का नामकरण करने का सुझाव दिया था।