script24 साल पहले हादसे में गंवाई आंख, अब बिना देखे जूते-चप्पल की कर लेते हैं सिलाई और पॉलिश | ÙHe lost his sight in an accident 24 years ago, now he can stitch and polish shoes and slippers without seeing | Patrika News
बालोद

24 साल पहले हादसे में गंवाई आंख, अब बिना देखे जूते-चप्पल की कर लेते हैं सिलाई और पॉलिश

बालोद जिले के कई दिव्यांग व्यक्ति अपनी दिव्यांगता के कारण आत्मविश्वास खो देते है और कुछ कर नहीं पाते। जबकि हर व्यक्ति में हुनर छिपा होता है।

बालोदDec 02, 2024 / 11:30 pm

Chandra Kishor Deshmukh

बालोद जिले के कई दिव्यांग व्यक्ति अपनी दिव्यांगता के कारण आत्मविश्वास खो देते है और कुछ कर नहीं पाते। जबकि हर व्यक्ति में हुनर छिपा होता है।
World Disabled Day बालोद जिले के कई दिव्यांग व्यक्ति अपनी दिव्यांगता के कारण आत्मविश्वास खो देते है और कुछ कर नहीं पाते। जबकि हर व्यक्ति में हुनर छिपा होता है। आप भी अपने मनोबल से टूटे हैं तो एक बार जिला मुख्यालय से लगे ग्राम झलमला के 63 वर्षीय नेत्रहीन चंद्रिका प्रसाद जगनायक से जरूर मिलिए।

मन की आंखों से करते हैं अपना काम

पेशे से जूते, चप्पल की सिलाई व पॉलिश करने वाले चंद्रिका प्रसाद के साथ 24 साल पहले हादसा हुआ और दोनों आंख खो दी। उन्होंने आंख जरूर खोई, लेकिन अपना काम नहीं छोड़ा। आंख से बाहर की दुनिया जरूर देख नहीं पाते पर मन की आंखों से जूते-चप्पल की सिलाई व पॉलिश कर अपना जीवन चला रहे हैं।
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उन्हें सब पता रहता है कि सामान कहां

चंद्रिका ने पत्रिका को बताया कि हादसे के बाद फिर काम शुरू किया। पहले हिम्मत नहीं हो रही थी। बिना आंख के जूते-चप्पल की सिलाई व पालिश कैसे करूंगा। हिम्मत आई और दुकान में अपने हिसाब से सामान रखा। आज भी वे पॉलशि करते हैं और उन्हें पता चल जाता है कि पॉलिश और ब्रश कहां है।

औजार घुसने के कारण आंख हुई खराब

उन्होंने बताया कि वह पहले दल्लीराजहरा में काम करते थे। 1980 में जूते की सिलाई कर रहे थे। सिलाई करने वाले औजार में धागा था, जो टूट गया और नुकीला औजार आंख में घुस गया। पहले तो एक आंख खराब थी। एक आंख से काम चला लेता था, लेकिन 20 साल बाद 2000 में उनकी एक और आंख खराब हो गई। दोनों आंख से नेत्रहीन होने के बाद भी अपने काम को नहीं छोड़ा।
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अन्य लोगों के लिए प्रेरणा है चंद्रिका प्रसाद

चंद्रिका प्रसाद काम अच्छा कर लेते हैं, लेकिन हौसला व लगन आज भी अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बना हुआ है। जिले के अन्य दिव्यांगों के लिए भी सीख है कि वह भी अपनी शक्ति व हुनर को पहचाने और कुछ करें, हिम्मत कभी न हारे।

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