लखनऊ। आज भारत देश के उस शूरवीर का जन्मदिन है जिसने देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने की पहली हुंकार भरी थी। इतिहास में दर्ज उस ‘असफल विद्रोह’ (1857 की क्रांति) के नायक भले ही कई रहे हों पर शुरुआत करने वाले थे उत्तर प्रदेश की जमीन पर जन्मे मंगल पांडे। एक आम सैनिक जिसने अंग्रेजी हुकूमत के बेजा फरमानों के खिलाफ आवाज उठाई, प्राण दे दिए पर घूटने नहीं टेके।
मंगल पांडे की शहादत की कहानी जैसे-जैसे आगे फैली विद्रोह की लहर ऐसी उठी की सारा उत्तर भारत अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लामबंद हो गया। मंगल पांडे द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था।
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उत्तर प्रदेश में हुआ था जन्म
मंगल पाण्डेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को वर्तमान उत्तर प्रदेश (जो उन दिनों संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के नाम से जाना जाता था) के बलिया जिले में स्थित नगवा गांव में हुआ था।
इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण युवावस्था में उन्हें रोजी-रोटी की मजबूरी में अंग्रेजों की फौज में नौकरी करने पर मजबूर कर दिया। वो सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए। मंगल बैरकपुर की सैनिक छावनी में ’34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री’ की पैदल सेना में एक सिपाही थे।
31 मई को थी पूरे देश में विद्रोह की तैयारी
कहा जाता है कि पूरे देश में एक ही दिन 31 मई 1857 को क्रान्ति आरम्भ करने का निश्चय किया गया था परन्तु 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी के सिपाही मंगल पाण्डे के विद्रोह से उठी ज्वाला वक्त का इंतजार नहीं कर सकी। इसीलिए मंगल पाण्डे को 1857 की क्रान्ति का पहला शहीद सिपाही माना जाता है।
29 मार्च की कहानी
29 मार्च 1857, दिन रविवार, बैरकपुर छावनी, 34वीं देसी पैदल सेना की रेजीमेन्ट का परेड ग्राउंड। सिपाही मंगल पांडे ने नई कारतूस के इस्तेमाल करने से मना किया और अन्य लोगों को भी ललकारा, “अरे! अब कब निकलोगे? तुम लोग अभी तक तैयार क्यों नहीं हो रहे हो? ये अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट कर देंगे। आओ सब मेरे पीछे आओ। हम इन्हें अभी खत्म कर देते हैं।” कोई उनके साथ नहीं आया तो वे अकेले ही मोर्चे पर डटे रहे और अंग्रेजी हुकूमत को ललकारते रहे।
अंग्रेज सार्जेंट मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन ने मंगल पाण्डे को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया। यह सुन मंगल पाण्डे की बन्दूक गरज उठी और सार्जेंट मेजर ह्यूसन वहीं लुढक गया। अपने साथी की यह स्थिति देख घोड़े पर सवार लेफ़्टिनेन्ट एडजुटेंट बेम्पडे हेनरी वाग मंगल पाण्डे की तरफ बढ़ा, परन्तु इससे पहले कि वह मंगल पर काबू कर पाता उन्होंने उस पर भी गोली चला दी। इस बार भाग्य ने मंगल का साथ नहीं दिया और गोली घोड़े को जा लगी और वाग नीचे गिरते हुये फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। इस बीच मंगल पाण्डे ने अपनी तलवार निकाल ली जो पलक झपकते ही वाग के सीने और कंधे को चीरते हुये निकल गई।
जनरल जान हियर्से ने ईश्वरी प्रसाद को हुक्म दिया कि मंगल पाण्डे को तुरंत गिरफ्तार कर लो पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद जनरल हियर्से ने भोख पल्टू को मंगल पांडे को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया। भोख पल्टू ने मंगल पांडे को पीछे से पकड़ लिया। मंगल पाण्डे ने गिरफ्तार होने से बेहतर मौत को गले लगाना उचित समझा और बंदूक की नली अपने सीने पर रख पैर के अंगूठे से फायर कर दिया। लेकिन, वह कदम उसे सिर्फ घायल ही कर सका। इसके बाद अंग्रेजी सेना ने उसे चारों तरफ से घेर कर बंदी बना लिया और मंगल पाण्डे के कोर्टमार्शल का आदेश हुआ।
कोर्ट मार्शल से फांसी तक
अंग्रेजी हुकूमत ने 6 अप्रैल को फैसला सुनाया कि मंगल पाण्डे को 18 अप्रैल को फांसी पर चढ़ा दिया जाए। परन्तु बाद में यह तारीख 8 अप्रैल कर दी गई ताकि विद्रोह की आग अन्य रेजिमेन्टों में भी न फैल जाए।
मंगल पाण्डे के प्रति लोगों में इतना सम्मान पैदा हो गया था कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फांसी देने को तैयार नहीं हुआ। नजीतन कल्कत्ता से चार जल्लाद बुलाकर मंगल पांडे को 8 अप्रैल, 1857 के दिन फांसी पर चढ़ा दिया गया। मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ाकर अंग्रेजी हुकूमत ने जिस विद्रोह की चिंगारी को खत्म करना चाहा, वह तो फैल ही चुकी थी और देखते ही देखते इसने पूरे देश को अपने आगोश में ले लिया।
क्या थी बगावत की वजह
ईस्ट इंडिया कंपनी की रियासत व राज हड़प और फिर इशाई मिस्नरियों द्वारा धर्मान्तरण आदि नीतियों ने लोगों के मन में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति पहले ही नफरत पैदा कर दी थी। जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में ‘नई कारतूसों’ का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मामला और बिगड़ गया। दरअसल, इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था और भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। उनके मन में ये बात घर कर गयी कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने पर अमादा हैं क्योंकि ये हिन्दू और मुसलमानों दोनों के लिए नापाक था।
भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से पहले से ही भारतीय सैनिकों में असंतोष था और नई कारतूसों से संबंधित अफवाह ने आग में घी का काम किया। 9 फरवरी 1857 को जब ‘नया कारतूस’ देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पाण्डेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का हुक्म हुआ। मंगल पाण्डेय ने उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और 29 मार्च सन् 1857 को उनकी राइफल छीनने के लिये आगे बढ़े अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण कर दिया।
मंगल पांडे और भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम
भारत के लोगों में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति विभिन्न कारणों से घृणा बढ़ती जा रही थी और मंगल पांडे के विद्रोह ने एक चिंगारी का काम किया। मंगल द्वारा विद्रोह के ठीक एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की सैनिक छावनी में भी बगावत हो गई और यह विद्रोह देखते-देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया।
इस बगावत और मंगल पांडे की शहादत की खबर फैलते ही अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा। हालांकि अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए, लेकिन मंगल द्वारा 1857 में बोया गया क्रांति का बीज 90 साल बाद आजादी के वृक्ष के रूप में तब्दील हो गया।
इस विद्रोह (जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है) में सैनिकों समेत अपदस्थ राजा-रजवाड़े, किसान और मजदूर भी शामिल हुए और अंग्रेजी हुकुमत को करारा झटका दिया। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश दे दिया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे।
आधुनिक युग में मंगल पांडे
मंगल पांडे के जीवन के पर फिल्म और नाटक प्रदर्शित हुए हैं और पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं। सन 2005 में प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान द्वारा अभिनित ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म का निर्देशन केतन मेहता ने किया था। सन 2005 में ही ‘द रोटी रिबेलियन’ नामक नाटक का भी मंचन किया गया। इस नाटक का लेखन और निर्देशन सुप्रिया करुणाकरण ने किया था।
जेडी स्मिथ के प्रथम उपन्यास ‘वाइट टीथ’ में भी मंगल पांडे का जिक्र है।
सन 1857 के विद्रोह के पश्चात अंग्रेजों के बीच ‘पैंडी’ शब्द बहुत प्रचलित हुआ, जिसका अभिप्राय था गद्दार या विद्रोही।
भारत सरकार ने 5 अक्टूबर 1984 में मंगल पांडे के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
ये है मंगल पांडे का फांसीनामा
14 मई 1857 को गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिंगज ने मंगल पाण्डे का फांसीनामा अपने आधिपत्य में ले लिया। 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में मंगल पाण्डे को प्राण दण्ड दिए जाने के ठीक सवा महीने बाद, जहां से उसे कल्कत्ता के फ़ोर्ट विलियम कालेज में स्थानान्तरित कर दिया गया था। सन 1905 के बाद जब लार्ड कर्जन ने उडीसा, बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश की थल सेनाओं का मुख्यालय बनाया गया तो मंगल पांडे का फांसीनामा जबलपुर स्थान्तरित कर दिया गया।
जबलपुर के सैन्य संग्राहलय में मंगल पाण्डे का फांसीनाम आज भी सुरक्षित रखा है। इसका हिन्दी अनुवाद निम्नवत है…
जनरल आर्डर्स वाय हिज एक्सीलेन्सी द कमान्डर इन चीफ़, हेड कवार्टर्स, शिमला – 18 अप्रैल 1857,
गत 18 मार्च 1857, बुधवार को फ़ोर्ट बिलियम्स में सम्पन्न कोर्ट मार्शल के वाद कोर्ट मार्शल समिति 6 अप्रैल 1857, सोमवार के दिन बैरकपुर में पुन: इकट्ठा हुई तथा पांचवी कंपनी की 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेन्ट्री के 1446 नं के सिपाही मंगल पांडे के खिलाफ लगाये गये निम्न आरोपों पर विचार किया।
आरोप (1) बगावत: 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में परेड मैदान पर अपनी रेजीमेंट की कवार्टर्गाड के समक्ष तलवार और राईफल से लैस होकर अपने साथियों को ऐसे शब्दों में ललकारा, जिससे वे उत्तेजित होकर उसका साथ दें तथा कानूनों का उल्लंघन करें।
आरोप (2) इसी अवसर पर पहला वार किया गया तथा हिंसा का सहारा लेते हुये अपने वरिष्ठ अधिकारियों, सार्जेंट-मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन और लेफ़्टिनेंट-अडजुटेंट बेंम्पडे हेनरी वाग जो 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेन्ट्री के ही थे, पर अपनी राईफल से कई गोलियां दागीं तथा बाद में तलवार से कई वार किये।
निष्कर्ष: अदालत पांचवी कंपनी की 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेंट्री के सिपाही नं. 1446, मंगल पांडे को उक्त आरोपों का दोषी पाती है।
सजा: अदालत पांचवी कंपनी की 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेंट्री के सिपाही नं. 1446, मंगल पांडे को मृत्यूप्रयन्त फांसी पर लटकाये रखने की सजा सुनाती है।
अनुमोदित एंव पुष्टिकृत
हस्ताक्षरित जे.बी. हर्से, मेजर जनरल कमाण्डिंग
प्रेजीडेन्सी डिवीजन बैरकपुर – 7 अप्रैल 1857
टिप्पणी: पांचवी कंपनी की 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेंट्री के सिपाही नं: 1446, मंगल पाण्डे को कल 8 अप्रैल को प्रात: साढे पांच बजे ब्रिगेड परेड पर समूची फौजी टुकडी के समक्ष फांसी पर लटकाया जायेगा।
हस्ताक्षरित जे.बी. हर्से, मेजर जनरल कमाण्डिंग
प्रेजीडेन्सी डिवीजन
इस आदेश को प्रत्येक फौजी टुकड़ी की परेड के दौरान और खास तौर से बंगाल आर्मी के हर हिन्दुस्तानी सिपाही को पढ़कर सुनाया जाए।