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बालाघाट

अयोध्या के बाद इस इलाके को भी कहा जाता है राम की नगरी, वनवास से जुड़ा है यहां का नाता

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम 14 वर्षो के वनवास के दौरान इसी नगरी से होते हुए महाराष्ट्र के रामटेक गए थे।

बालाघाटJan 07, 2024 / 09:49 pm

Faiz

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अयोध्या के बाद इस इलाके को भी कहा जाता है राम की नगरी, वनवास से जुड़ा है यहां का नाता

22 जनवरी को अयोध्या में रामलला का प्राण प्रतिष्ठा समारोह होने जा रहा है। जिसकी तैयारियां देशभर में जोर शोर से चल रही हैं। ये बात तो हम सभी जानते हैं कि अयोध्या को श्री राम की नगरी कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानतें हैं कि मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले की रामपायली को भी भगवान श्रीराम की नगरी के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम 14 वर्षो के वनवास के दौरान इसी नगरी से होते हुए महाराष्ट्र के रामटेक गए थे। यहां स्थित चंदन नदी किनारे एक विख्यात मंदिर भी है, जिसे श्रीराम बालाजी के साथ देश के बड़े क्षेत्र में पहचान प्राप्त है।

 

मध्य प्रदेश के बालाघाट मुख्यालय से 30 कि.मी स्थित रामपायली में भगवान राम का 1625 ईसा पुर्व एक प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है। मंदिर में सालभर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के साथ साथ देश के कई इलाकों से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां चंदन नदी के तट पर एक किलेनुमा मंदिर है, जिसमें भगवान राम और सीता की कालेपत्थर की क्रोधित और वनवासी रुपी प्रतिमा विराजित है। ये मूर्ति भगवान राम के वनवास के दिनों को दर्शाती है। यही नहीं, मंदिर में एक रेत का शिवलिंग और हनुमान जी का मंदिर भी है, जिसे लंगड़े हनुमान जी नाम कहा जाता है। हनुमान जन्मोत्सव और कार्तिक पूर्णिमा में यहां एक भव्य मेला लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

 

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यहीं श्री राम ने माता सीता को दिया था अभयदान

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यहां का प्रसिद्ध श्रीराम बालाजी मंदिर भगवान श्रीराम के वनगमन की कई ऐतिहासिक धरोहरें और मान्यताएं समेटे है। इतिहासकारों के अनुसार रामपायली में ऋषि शरभंग का आश्रम था। वनवास के दौरान श्री राम अपने साथ सीता माता को लेकर यहां दर्शन करने आए थे, लेकिन दर्शन से पहले ही रामपायली से कुछ दूरी पर देवगांव में विराध नामक राक्षस सामने आ गया, जिसका वध कर उन्होंने ऋषि के दर्शन प्राप्त किए। इस दौरान सीता माता राक्षस के सामने आने से भयभीत हो गई थीं जिससे भगवान ने विकराल रूप धारण कर सीताजी के सिर पर हाथ रख अभयदान दिया था, इसी रुप में रामपायली मंदिर में बालाजी और माता सीता की वनवासी प्रतिमा विराजित है।


शख्स को सपने में दिखी थी मूर्ति

मंदिर के पुजारी रविशंकर दास वैष्णव का कहना है कि भगवान राम और सीता के भ्रमण के साथ ही रामपायली मंदिर में वनवासी रुप की मूर्ति स्थापना की अलग गाथा है। यहां करीब सैकड़ो साल पहले एक शख्स को सपने में दिखा कि मंदिर से सटी नदी के पानी में हजारों साल पुरानी प्राचीन उक्त मूर्ति पड़ी है। देखे गए स्वप्न के अनुसार नदी में तलाशी ली गई तो उसमें सचमुच मूर्ति निकली। इसके बाद संबंधित लोगों ने मूर्ति को नदी से निकालकर एक पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया। तभी से इस स्थान को राम ढोह नाम से जाना जाता है। इसके बाद नागपुर के राजा भोसले ने सन 1665 में मंदिर का जीर्णोंद्धार कर मूर्ति स्थापित कराई थी और 18वीं शताब्दी में मंदिर का नव निर्माण कर इसे आधुनिक रूप दिया गया।


खुद-ब-खुद प्रकट हुई थी हनुमान जी मूर्ति

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मंदिर में एक श्रीराम भक्त हनुमान जी की प्रतिमा भी स्थापित है, जिसे लेकर मान्यता है कि ये मूर्ति खुद ब खुद प्रकट हुई थी। ये मूर्ति लंगड़े हनुमान जी नाम से प्रख्यात है। पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीराम भक्त पूर्व मुखी हनुमान जी की मूर्ति का एक पैर जमीन पर और दूसरा पैर यानी बायां पैर जमीन के अंदर होने से स्पष्ट दिखाई नहीं देता। वर्षों पूर्व एक समिति ने हनुमानजी की मूर्ति हटाकर मंदिर में स्थापित करने की कोशिश की थी तब पचास फीट से अधिक गड्ढा खोदा गया था, लेकिन पैर का दूसरा छोर नहीं मिल पाया. मान्यता है कि भगवान हनुमान जी का पैर पाताल लोक तक गया है, यहां हनुमान जन्मोत्सव व कार्तिक पूर्णिमा के अलावा साल भर श्रृद्धालूओं का तांता लगा रहता है मंदिर पहुंचने वाले भक्तगण इन मूर्तियों की कहानियां बड़े उत्साह से सुनते हैं।


रेत का शिवलिंग भी चमत्कारी

शिवलिंग के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर रेत की शिवलिंग स्वयंभू है जो सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते है। चंदन नदी किनारे मंदिर होने से रोजाना सूरज की पहली किरण रेत के शिवलिंग को स्पर्श करते हुए भगवान राम जिन्हें काले बालाजी के नाम से भक्तगण पुकारते है,उनके चरणों में पढ़ती हैं यह दृश्य प्रातः सुबह देखा जा सकता है।

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