विकास से अब भी अछूता है नक्सल प्रभावित दुगलई गांव
दक्षिण बैहर के ग्राम पंचायत बिठली के अंतर्गत आने वाले अतिनक्सल प्रभावित ग्राम दुगलई घने जंगलों के बीच बसा हुआ है। यहां की आबादी महज 100 के करीब है। यहां पर करीब 35 परिवार के बैगा आदिवासी निवास करते हैं। इन बैगा आदिवासियों के जीवन में अभी तक कोई भी बदलाव नहीं आ पाया है। प्रशासन ने यहां विकास के लिए करोड़ों रुपए की राशि खर्च कर दी है। लेकिन इसका समुचित लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है।पीएम आवास में नहीं रहते ग्रामीण
गांव में करीब 8 हितग्राहियों को पीएम आवास स्वीकृत हुआ था। ग्रामीणों ने ठेकेदार के माध्यम से आवास तो बना लिया। लेकिन वे अब उसमें निवास नहीं करते। मौजूदा समय में पीएम आवास पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के दिनों में इस आवास से पानी टपकता है। इस कारण वे इसमें निवास नहीं करते हैं।शौचालय में रख रहे सामग्री
स्वच्छता अभियान के तहत ग्रामीणों के लिए यहां शौचालय का भी निर्माण कराया गया है। लेकिन इसका उपयोग ग्रामीण नहीं करते हैं। शौचालय को ग्रामीणों ने कबाडख़ाना बना रखा है। इसे सामग्री रखने के लिए उपयोग कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार गांव में करीब 10 शौचालय का निर्माण कराया गया है।शो पीस बने बिजली के खंभे
दुगलई गांव में बिजली आपूर्ति के लिए लाइन का विस्तार किया गया है। लेकिन यहां अभी भी बिजली नहीं है। ग्रामीण अंधेरे में रात गुजारते हैं। शाम ढलते ही ग्रामीण अपने-अपने घरों में दुबक जाते हैं। यह किसी एक दिन की समस्या नहीं है। बल्कि ग्रामीणों ने इसे अपनी दिनचर्या ही बना लिया है।वनोपज ही है रोजगार का साधन
ग्रामीणों के अनुसार उनके लिए वनोपज ही रोजगार का साधन है। तेंदुपत्ता तोड़ाई, पत्तल बनाकर उसका विक्रय करना सहित अन्य कार्यों से वे आय अर्जित करते हैं। इसके अलावा उनके पास रोजगार के लिए कोई दूसरे साधन नहीं है।विकास के नाम पर ये हुए कार्य
गांव पहुंचने के लिए प्रशासन ने पक्की सडक़ बनवा दी है। यहां किरनापुर से गोदरी, भगतपुर होते हुए दुगलई पहुंचते हैं। इसके अलावा गांव में प्राथमिक शाला भवन, आंगनबाड़ी केन्द्र और सभा मंच का निर्माण कराया गया है। वहीं ग्रामीणों को पेयजल आपूर्ति के लिए पानी टंकी लगा दी गई है। जिसे सौर ऊर्जा की बिजली का उपयोग कर भरा जाता है।इनका कहना है
पीएम आवास तो है लेकिन उसमें बारिश का पानी टपकता है। सभी ग्रामीण आज भी कच्चे मकान में ही निवास करते हैं। बिजली नहीं होने से परेशानी होती है। यह समस्या वर्षों से बनी है।
-बसंती बाई, ग्रामीण महिला
गांव में बिजली के खंभे लगाए गए हैं, लेकिन बिजली आपूर्ति नहीं होती है। शाम ढलते ही सभी ग्रामीण अपने-अपने घरों में कैद हो जाते हैं। गांव में रोजगार के साधन नहीं है। वनोपज के सहारे ही आय अर्जित करते हैं।
-दलपत टेकाम, ग्रामीण