श्री भीलट देव से मन्नत मांगने पर होती है पूरी, किन्नर ने संतान प्राप्ति की मांगी थी मन्नत, गर्भ होने से किन्नर की हुई थी मौत, तब से आज तक कोई भी किन्नर नागलवाड़ी में नहीं करता है रात्रि विश्राम
बड़वानी•May 25, 2021 / 11:27 am•
vishal yadav
Bhilat Dev Temple at Nagalwadi Shikhardham
बड़वानी. परम पूज्य श्री भीलट देव की पुण्य अवतरण कथा के बारे में कहा जाता है कि विक्रम संवत 1220 में इनका प्राकट्य मध्य प्रदेश के हरदा जिले के ग्राम रोलगांव में हुआ था। इनके पिता का नाम राणा रेलण एवं ममतामई माता का नाम मैदा बाई था। निमाड़ के प्रसिद्ध संत सिंगाजी की तरह ही वह गवली परिवार में गोपालन कर जीवनयापन करते थे। उनका परिवार सुख समृद्धि होते हुए भी संतान के ना होने से सुना-सुना रहता था। उनके माता-पिता सच्चे शिव भक्त थे।
शिखरधाम मंदिर मुख्य पुजारी राजेंद्र बाबा ने बताया कि आस्थावान दंपत्ति की भक्ति साधना से प्रसन्न होकर एक दिन शिव जी ने दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा। निसंतान राणा दंपति की आंखें झर-झर झरने लगी। भगवान से कहा कि आप सर्व ज्ञाता हो, हमारे निसंतान होने के कलंक को गंगाधर मां गंगा की धार से धो दीजिए, तब शिवजी बोले.. है भक्त युगल आपकी किस्मत में संतान का सुख तो नहीं है, लेकिन मेरे वरदान के फल स्वरुप एक तेजस्वी बालक का जन्म होगा, लेकिन वह आपके पास जब तक रहेगा, तब तक मैं चाहूंगा। कल्याणकारी शिव जी का वचन कालांतर में फलित हुआ। शिव कृपा से यशस्वी कीर्तिमान शिवप्रसाद पूज्य भीलट देव का पुण्य अवतरण हुआ। राणा रेलण और पत्नी संतान सुख भोगने लगे। समय चक्र अनवरत चलता रहा। संयोग से एक दिन भगवान शिव शंकर साधु वेश बनाकर राणा दंपति की परीक्षा लेने आए। तब अपने साथ बालक रूपी भीलट देव को उठाकर अपने साथ चौरागढ़धाम ले गए। खाली पलने में एक नाग छोड़ गए। इधर बालक को न पाकर दोनों आपको ली व्याकुल भटकने लगे। तब आकाशवाणी के माध्यम से दयालु शिव जी ने कहा कि बालक आपको नहीं मिल पाएगा, लेकिन ये नाग देवता आपकी सुरक्षा में रहेंगे। आज से आपका ये सुपुत्र नागौर मानव रूप में सर्वत्र पूजित होगा।
विरोधी तांत्रिक शक्तियों के विनाश के लिए हुआ था भीलट देव का जन्म
राजेंद्र बाबा ने बताया कि इधर चौरागढ़ धाम में जगत पिता शंकर एवं जगत माता पार्वती ने बालक को तंत्र-मंत्र एवं जादू टोने की शिक्षा देकर महिमावंत कर दिया। कहा जाता है कि भीलट देव का जन्म समाज विरोधी तांत्रिक शक्तियों के विनाश के लिए हुआ था। उस समय समूचे भारत वर्ष में तंत्र बाद अपने चरम पर था। माता शिव गोरा से शिक्षित दिक्षित होकर भीलट देव ने बंगाल जाने की सोची। तब बाबा भोलेनाथ एवं पार्वती जी ने भैरवान जी को साथ ले जाने को कहा। तब दोनों भाई भीलट एवं भैरव दोनों बंगाल का काला जादू देखने वहां पहुंचे। क्योंकि उस समय बंगाल में तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग अधिक होता था। कई तांत्रिकों का विनाश करते हुए भीलट देव बंगाल के काहुर नामक क्षेत्र में पहुंचे। वहां जाकर विख्यात तांत्रिक गंगा, तेलन, मियां, लाल, फकीर, लुनिया, चमार, कपूरिया धोबी जैसे कई तांत्रिकों का विनाश किया। वहां के वर्तमान राजा गंधी की कन्या जिसका नाम राजल था, उसके साथ भीलट देव जी का विवाह संपन्न हुआ। बंगाल विजय प्राप्त कर जब भीलट देव चौरागढ़ आए, तब भीलट देव की सफलता से प्रसन्न होकर शिव जी ने कहा कि तुम्हारे अवतरण को लेकर मेरा जो उद्देश्य था, वह पूर्ण हुआ। वत्स अब तुम जनकल्याण और दुखियों की पीड़ा हरने पश्चिम निमाड़ में जाकर राज करो। भीलट देव वहां से रवाना हुए। जहां-जहां रुकते गए। वहां-वहां उनके स्थान बनते गए। जिस स्थान पर रुक कर बाबा जी ने अपना कर्म किया। वह स्थान भीलट देव एवं नाग देवता के कारण ग्राम का नाम नागलवाड़ी पड़ा।
शिखरधाम पर किया था भीलट देव ने तप
भीलट देव सेवा समिति अध्यक्ष दिनेश यादव ने बताया कि ये बाबा भीलट देव की कर्मभूमि है। यहीं से 7 किमी दूर सतपुड़ा अंचल के शिखर पर बाबा जी ने तप किया। यहीं पर बाबा जी ने समाधि ली। इसलिए ये स्थान आज भीलट देव की तपोभूमि समाधि स्थल के नाम से जाना जाता है। यहां आए हर भक्त की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। विशेषकर निसंतान दंपति की मनोकामना बाबाजी शीघ्र पूर्ण करते है। करीब 200 वर्ष पूर्व की घटना है। एक किन्नर ने बाबा जी से जीद की कि आप महिलाओं को संतान देते हो, मुझ जैसे किन्नर को संतान दोगे तो मानूंगा। बाबाजी के आशीर्वाद से उस किन्नर को भी गर्भ रहा। अंत में उसकी मृत्यु हो गई। तब से आज तक कोई भी किन्नर नागलवाड़ी में रात्रि विश्राम नहीं करता है। ये प्रमाणित है। श्रावण माह की नागपंचमी पर बाबाजी का भव्य मेला लगता है। बाबाजी के भक्तों के जन सहयोग से पूरे वर्ष बाबा जी के यहां भंडारों का आयोजन होता है। सभी के जन सहयोग से भीलट देव सेवा समिति भिलट देव कर्म भूमि एवं तपोभूमि समाधि स्थल पर होने वाले कार्यों का निर्वाह करती है। जय बाबा भीलट देव की।
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