समिति के अध्यक्ष एसके सत्येन ने कहा कि रेलवे को लेकर सरकारों ने निरंतर आजमगढ़ जिले की उपेक्षा की है। अस्तित्व में आने के 122 साल बाद भी यह रेलवे स्टेशन बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। यहां से केवल एक ब्रांच लाइन ’शाहगंज मऊ’ गुजरती है। वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर, सुल्तानपुर के लिए जिले से कोई सीधी ट्रेन नहीं है। इसके अलावा बड़े महानगरों के लिए भी ट्रेनों का अभाव है। जबकि ट्रेन संख्या के आधार पर आजमगढ़ जनपद पूर्वोत्तर रेलवे में सबसे अधिक आय देने वाला स्टेशन है। इसके बाद भी इसकी उपेक्षा समझ से परे है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2007 से अब तक कई रेल मंत्री हुए और उन्होंने कोलकाता सहित कई महानगरों के लिए ट्रेन की घोषणा की लेकिन संचालन शुरू नहीं हुआ। अगर कहीं के लिए हुआ भी तो हफ्ते में एक दिन। कम से कम मुंबई, कोलकाता जैसे महानगर के लिए हर दिन ट्रेन होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने मऊ आजमगढ़ शाहगंज तक रेलवे लाइन के दोहरीकरण और विद्युतीकरण तथा वाराणसी से आजमगढ़ वाया गोरखपुर के लिए सीधी रेललाइन का वादा किया गया था, लेकिन यह वादा आज तक पूरा नहीं किया गया। रेल राज्यमंत्री ने तो इंटरसिटी एक्सप्रेस को भी आजमगढ़ होकर संचालित नहीं होने दिया। इसके पूर्व उन्होंने कैफियात को भी मऊ से चलाने की साजिश की लेकिन सफल नहीं हुए। सरकार की मंशा आजमगढ़ को लेकर हमेशा से साफ नहीं रही है।
उन्होंने कहा कि आजमगढ़ रेलवे का विकास तब तक संभव नहीं है जब तक यह अपने पड़ोसी बड़े जिलों ’वाराणसी और गोरखपुर’ से सीधे नहीं जुड़ जाएगा। इसलिए वाराणसी आज़मगढ़ गोरखपुर रेल लाइन का बनना क्षेत्र के विकास के लिये अत्यंत आवश्यक है। इस लाइन से न केवल आज़मगढ़ बल्कि सम्पूर्ण पूर्वांचल का विकास होगा। यह लाइन इन क्षेत्रों के आर्थिक, सामाजिक और आधारभूत सुविधाओं के विकास को कायाकल्प करने वाली लाइन साबित होगी ।
दीपक यादव ने कहा कि इन क्षेत्रों के पिछड़ेपन को अनुभव करते हुए ही 1960 के दशक में लालगंज के तत्कालीन सांसद स्व. कालिका सिंह ने संसद में वाराणसी आजमगढ़ गोरखपुर को लेकर आवाज उठाई थी। तत्कालीन रेल मंत्री कमलापति त्रिपाठी ने इसके निर्माण के लिए सर्वे भी कराया था, लेकिन उसके बाद इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। तब से आज तक यहां के लोग इस प्रोजेक्ट के मूर्तरूप लेने का इंतजार कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले दिनों सत्ताधारी दल की सांसद नीलम सोनकर ने इस मामले को सदन में उठाया। लेकिन सरकार ने अपने सांसद की मांग को भी खारिज कर दिया। जबकि उनकी पहल से पहले 2017 में 200 किमी के इस प्रोजेक्ट का ’सर्वे’ भी किया जा चुका था। मानसून सत्र के बाद 4200 करोड़ के बजट की चर्चा भी हुई। इसके बाद फिर प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसको लेकर जनमानस में तीव्र रोष साफ दिख रहा है, पर कोई नेतृत्व न होने की वजह से यह रोष मुखर नहीं हो रहा है। 2019 के चुनाव में इसे चुनावी मुद्दे में बदल दिया जाएगा फलतः चुनाव के बाद पुनः यही स्थिति बनी रहेगी। जबकि यह लाइन 7 लोकसभा क्षेत्रों ’वाराणसी, मछलीशहर, लालगंज, आज़मगढ़, घोसी, बांसगांव, गोरखपुर’ व इनसे जुड़े 35 विधानसभाओं से सीधे जुड़ेगी।
आशीष कुमार ने कहा कि शीघ्र ही इस प्रस्तावित लाइन के मुद्दे पर देवगांव, लालगंज, मुबारकपुर’ के लोगों को साथ लेकर संगठन बड़ा अभियान शुरू करेगा। इस मौके पर रूद्र प्रताप अस्थाना, विजय चौरसिया, ज्ञानेंद्र सिंह, विनोद सिंह, पारस सोनकर, मो. आसिम, बब्लू, सूरज, अशोक गुप्ता, कृष्णपाल सिंह आदि उपस्थित थे।
BY- RANVIJAY SINGH