उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) आजमगढ़ मंडल गोपालदास ने बताया कि किसानों की आय दोगुनी करना शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसके लिए आवश्यक है कि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ लागत में कमी आये जिससे कृषकों की शुद्ध आय में वृद्धि हो सके। यह तभी संभव है जब हम नवीन तकनीकों का इस्तेमाल करें तथा यह सुनिश्चित करें कि फसलों में कम से कम रोग लगे। ताकि लागत को घटाया जा सके
उन्होंने बताया कि बीज शोधन एवं भूमि शोधन के द्वारा कम लागत में कीटों एवं रोगों का नियंत्रण कर गुणवत्ता युक्त अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। फसल सुरक्षा के लिए भूमि शोधन अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए 1 किलोग्राम ट्राई्कोड्रर्मा को 25 किलोग्राम कम्पोस्ट (गोबर की सड़ी खाद) में मिलाकर, हल्के पानी का छींटा देकर एक सप्ताह तक छायादार स्थान पर रखकर उसे जूट के गीले बोरे से ढक दें ताकि इसके बीजाणु अंकुरित हो जाये। इस कम्पोस्ट को एक एकड़ खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला दें। यानि अंतिम जोताई के पूर्व इसका प्रयोग करें, फिर बुआई/रोपाई करें।
यह फसल सुरक्षा का सबसे सस्ता, कारगर व प्रारंभिक उपचार है। बीज शोधन कर बुवाई करने से बीजों का अंकुरण व फसल की बढवार अच्छी होने के साथ-साथ उसमें बीमारी लगने के एक तिहाई अवसर घट जाते हैं। धान को कंडुआ (लेढ़ा) रोग से बचाने के लिए किसान भाई कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी (रसायन) की 50 ग्राम मात्रा को 40-50 लीटर पानी में घोल लें, इस घोल में धान बीज की 25 किग्रा मात्रा को एक रात्रि के लिए डुबो कर रखें ताकि रसायन पानी के साथ बीज के अन्दर अवशोषित हो जाये। इसके पश्चात धान को 24 घंटे तक छाया में सुखाकर अगले दिन नर्सरी डालें।
दहलनी फसलों में लगने वाले उक्ठा एवं अन्य बीमारियों के नियंत्रण हेतु ट्राइकोड्रर्मा (जैविक फफूंदी नाशक) की 4 से 5 ग्राम मात्रा 1 किलो बीज को शोधित करने के लिए पर्याप्त होती है। फसल सुरक्षा की अधिक जानकारी के लिए किसान अपने विकास खंड स्थित कृषि रक्षा इकाई के प्रभारी अथवा उनके मोबाइल नंबर 9415592498 पर संपर्क कर सकते हैं।