निर्धारित समय से करीब दो घंटे देरी से चार बजे धरनास्थल पर पहुंची मेधा पाटेकर ने कहा कि अडानी और अंबानी चौथे नंबर पर आए थे आज उनकी कमाई प्रतिदिन एक हजार से अधिक है। यह संविधान के खिलाफ है और हम भी गैर बराबरी के खिलाफ हैं। यह जो लोग गैर बराबरी का विकास थोप रहे हैं उनका विरोध कौन करता है। ये वे लोग है जिनका जीने का आधार, जिनकी संस्कृति खतरे में है। क्या इसका विरोध करना उनका अधिकार है कि नहीं। हम नेता नहीं हैं और ना ही हमारा कोई घोषणा पत्र है। नर्मदा आंदोलन 37 साल चला, तब जमीन के बदले जमीन मिली। वह भी कम से कम पांच एकड़। अभी हजारों लोगों के हक की लड़ाई जारी है।
उन्होंने कहा कि जरा सोचिए गुजरात में मोदी जी को नर्मदा का मुद्दा क्यों याद आता है क्यौंकि वे समझ गए हैं कि गुजरात ने नर्मदा के मुद्दे पर उन्हें फंसाया है। लोग आंदोलन की राह तय करते हैं नेता नहीं। यह जो आंदोलन चल रहा है उसे हमारा जन आंदोलन राष्ट्रीय समन्वय खुलकर साथ देगा। उन्होंने कहा कि आजमगढ़ के डीएम ने जो बयान दिया है उसपर हम हंसे या रोए कह ही नहीं सकते। उन्होंने जो कहा कि कानून का पालन करेंगे तो यह पुलिस को गांव में घुसाने तथा एयरपोर्ट का निर्णय लेने से पहले की प्रक्रिया थी। वह तो चली नहीं, अब उन्होंने जो आंकड़े दिए हैं हास्यप्रद हैं। 17 गांव के अगर 763 परिवार के ही आवास जा रहे हैं तो उनका यह कथन हमें मान्य ही नहीं है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ग्राम पंचायत को नकार रही है। ग्रामसभा को यह मानती ही नहीं है। आज की सरकार संविधान और कानून को नहीं मानती है यह दुख की बात है। अगर ऐसे ही चलेंगे तो खेती नहीं बचेगी, भूजल नहीं बचेगा, पानी खत्म हो जाएगा तो नदियां नहीं बचेगी और आक्सीजन भी नहीं मिलेगी। फिर लोग तड़प-तड़प कर मरेंगे। कोरोना से भी बड़े वायरस आ जाएंगे लेकिन ये जो गैर बराबरी का वायरस है वह सबसे खतरनाक है। विस्थापन और विनाश का वायरस सबसे खतरनाक है। इसलिए लोगों की जान बचाने के लिए हम उनके साथ। सत्ताधारी दल को लगता है एयरपोर्ट व अन्य निर्माण कर सब अडानी और अंबानी को दे देंगे और यही विकास है तो गलत है। विकास क्या है। क्या इस मुद्दे पर कभी सदन अथवा जनता के बीच बहस हुई है क्या। अगर बिल्डिंग और हाइवे ही विकास है तो यह गलत है। यह संविधान के खिलाफ है।
उन्होंने कहा कि हमारा आंदोलन अहिंसक होगा। हम अंबेडकर और गांधी को मानते हैं। आज देश में बड़े आंदोलन की जरूरत है। किसानों ने 7 महीनें के आंदोलन में 713 शहादत दी इसके बाद कृषि कानून वापस लिया गया। अभी श्रम कानून वापस ले रहे हैं। आजादी के बाद श्रमिकों को न्याय देने के लिए जो कानून बने उसे यह कमजोर कर चार कानून थोप रहे हैं। हर मुद्दे पर ये अड़गा लगाते हैं लेकिन जब चुनाव करीब आता है तो ये झुक जाते हैं।