बता दें कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी में एक तरफा जीत हासिल की थी। भाजपा गठबंधन को को 80 में से 73 सीट मिली थी। बसपा का खाता नहीं खुला था। बाकी सात सीटों में 2 कांग्रेस और 5 सपा के खाते में गई थी। अस्तित्व में आने के बाद यह भाजपा की अब तक की सबसे बड़ी जीत थी। इसके बाद बीजेपी गठबंधन में 2017 के विधानसभा चुनाव में 325 सीट जीतकर इतिहास रचा।
2017 के चुनाव के पहले यूपी में विकास न होने का ठिकरा बीजेपी बड़ी आसानी से
अखिलेश यादव की सरकार पर फोड़ रही थी लेकिन अब यूपी और केंद्र में उसकी सरकार है तो मतदाताओं की अपेक्षा काफी बढ़ गई है। वहीं पीएम मोदी की लोकप्रियता और लगातार हार से तिलमिलाया विपक्ष बीजेपी को मात देने के लिए किसी भी स्तर तक जाने के लिए तैयार है। यहां तक कि मायवती और अखिलेश भी गठबंधन की बात कर रहे हैं।
ऐेसे में दो राय नहीं भी 2019 में बीजेपी की चुनौती बढ़ी है। सत्ता और संगठन की एकजुटता ही बीजेपी को 2019 में जीत दिला सकती है। भाजपा नेतृत्व चुनाव तैयारियों में जुटा है लेकिन पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ में बुरी तरह मात खाने वाली बीजेपी का संगठन सबक लेने को तैयार नहीं है। पार्टी कई धड़ों में बंटी हुई है। बड़े नेताओं के प्रयास के बाद भी गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। यदि यही स्थिति रही तो 2019 में भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। गौर करें तो आजमगढ़ यादव व अति पिछड़ा बाहुल्य क्षेत्र है। पिछले दो चुनाव से अति पिछडा बीजेपी के साथ खड़ा है लेकिन यादव पूरी तरह सपा का वोट बैंक बना हुआ है। आजमगढ़ में बीजेपी को यादव जाति का वोट लेना है तो कोई बड़ा यादव चेहरा चाहिए।
यह भी पढ़ें- मौलाना आमिर रशादी का सपा पर बड़ा वार, कहा अखिलेश ने कराया था मुजफ्फनगर दंगा आजादी के बाद पहली बार 2009 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत यादव ने आजमगढ़ सदर सीट पर जीत दिलाकर यह साबित किया है कि उनकी यादवों में पैठ है। कारण कि उस समय अति पिछड़ा बीजेपी के साथ नहीं था। वह सभी दलों में बंटा हुआ था। 2014 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत यादव के खिलाफ
मुलायम सिंह यादव जैसे नेता को जीत हासिल करने के लिए नाको चने चबाने पड़े थे। जबकि सपा ने उस समय सत्ता का प्रयोग तो किया ही था साथ ही अपने पूरे कुनबे को आजमगढ़ में उतार दिया था। इसके बाद भी मुलायम सिंह हार जीत का अंतर 75 हजार नहीं पहुंचा सके थे।
पूर्वांचल में यादवों को साधने के लिए रमाकांत यादव बीजेपी की जरूरत है लेकिन आज जिला संगठन और रमाकांत यादव के बीच बहुत ही असामंजस्य की स्थिति बनी हुई है। इसका प्रमुख कारण जिला संगठन द्वारा रमाकांत यादव की उपेक्षा को बताया जा रहा है। सीएम योगी के कार्यक्रम में इसकी बानगी भी देखने को मिली थी।
राजनीति के जानकारों की माने तो यदि 2019 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ में फिर से कमल खिलाना है तो दोनों गुटों को आपस में सामंजस्य स्थापित करना होगा। साथ ही जिला संगठन को यह स्वीकार करना होगा कि आज भी बाहुबली रमाकांत यादव ही भाजपा के 2019 लोकसभा चुनाव में टिकट के प्रबल दावेदार हैं। अगर सामंजस्य नहीं बनता है तो बीजेपी की लुटिया यहां फिर डूबना लगभग तय है। कारण कि जिले में बीजेपी का कोई ऐसा नेता नहीं दिखता जिसकी पहुंच संसदीय क्षेत्र की सभी पांच विधानसभाओं तक हो।