ये भी पढ़ें- मुंबई से बाइक चलाकर आये युवक की क्वारन्टीन सेंटर में मौत इस श्रमिक की जब्द की गई साइकिल आजमगढ़ जिलेे के फूलपुर तहसील क्षेत्र के ओरिल गांव निवासी रामकेवल को ही लीजिए। वह गुजरात के सूरत शहर में साड़ी डिजाइनिंग का काम करता है। मार्च माह में लाकडाउन के बाद फैक्ट्री बंद कर दी गई। धीरे-धीरे जमा पैसा खत्म होने लगा। कमरे में रखा राशन भी खत्म हो गया। भूखो मरने की नौबत आने लगी, तो रामकेवल 20 अप्रैल को पैदल घर के लिए निकल पड़ा। उसे उम्मीद थी कि प्रशासन मदद कर घर पहुंचा देगा। तीन दिन लगातार भूखे, प्यासे पैदल चल कर वह 23 अप्रैल की सुबह गुजरात के हलोल नामक स्थान पर पहुंचा। पैरो में छाले पड़ गए थे हर कदम मुश्किल था। जेब में मात्र 15 सौ रुपये बचे थे। जब उसे लगा कि पैदल नहीं चल पाएगा तो उसने 12 सौ रुपये में पुरानी साइकिल खरीदी और किसी तरह हिम्मत कर घर की ओर चल दिया। दो दिन साइकिल से चलने के बाद 25 अप्रैल को दहोद पहुंचा। यहां पहुंचते ही गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों ने उसे रोक लिया और साइकिल जब्त कर ली। अधिकारियों ने कहां लॉकडाउन खुलेगा तो साइकिल ले जाना और यह कहते हुए सूरत भेज दिया कि जल्द ही ट्रेन से घर भेजा जाएगा। लेकिन अधिकारी उसे भूल गए। भूख से परेेशान रामकेवल ने एक स्थानीय नेता से मदद मांगी तो उसने मदद की और 10 मई को 850 रूपये जमा कर किसी तरह ट्रेन का टिकट हासिल किया और घर के लिए रवाना हुआ। अब वह होम कोरंटाइन है।
ये भी पढ़ें- यूपी कोरोनाः प्रवासियों के आने के बाद बढ़ रही संक्रमितों की संख्या, इन जिलों में एक साथ आए 10-10 नए मामले महिला को बेचनी पड़ी अपनी काल की बाली- इसी तरह गोरखपुर जिले की रहने वाली सविता मुंबई में रहकर काम करती थी। उसके साथ उसके तीन बच्चे भी मुंबई में ही रहते थे। लाक डाउन में काम ठप हुआ तो दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए। वह तीन दिन पूर्व एक ट्रक से घर के लिए रवाना हुई। ट्रक वाले ने गोरखपुर छोड़ने का तीन हजाार रूपये किराया मांगा तो महिला ने अपने कान की बाली बेचकर उसे भुगतान किया लेकिन रविवार की सुबह आजमगढ़ रोडवेज के पास छोड़कर चला गया। महिला पूरे दिन अपने बच्चों के साथ बस स्टाप के आसपास भटकती रही लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। सबिता ने बताया कि कान की बाली बेचकर उसने ट्रक का किराया तो अदा कर दिया लेकिन उसने बीच रास्ते में छोड़ दिया। पूरे रास्ते उसे और उसके बच्चे को न तो भोजन मिला और ना ही अन्य सहायता। बहरहाल उसे देर शाम बस से गोरखपुर जाने का मौका मिल गया।
इसी तरह गोरखपुर जनपद का रहने वाला भोला विशाखापट्टनम में रह कर काम करता था। जनवरी में उसका मित्र विकास भी विशाखापट्टनम काम की तलाश में पहुंच गया। अभी विकास को कोई काम मिला भी नहीं था कि लॉकडाउन शुरू हो गया। काम बंद हो गया। भोला जमा पूंजी से किसी तरह अपना और दोस्त का पेट पालता रहा, लेकिन कब तक। एक समय आया जब उसका पैसा समाप्त हो गया। जब कहीं सेे पैसे का इंतजाम नहीं हुआ और वे किराये की भी व्यवस्था नहीं कर पाए तो साइकिल से ही घर के लिए निकल पड़े। रविवार को दोनों आजमगढ़ के बवाली मोड़ पहुंचे। यहां लोगों से रास्ता पूछनेे के बाद गोरखपुर की तरफ चल दिये। रविवार को ऐसे 50 से अधिक लोेग जिला मुख्यालय पहुंचे। हर किसी की अपनी अलग कहानी थी। हर कोई आर्थिक तंगी का शिकार था, लेकिन उनका दर्द सुनने और समझने वाला कोई नहीं था।