डॉ. लोहिया ने कंचनमुक्ति का मार्ग अपनाया लेकिन वे कामिनी मुक्ति के मार्ग को निरापाखण्ड मानते थे। वे अर्द्धनारीश्वर की परिकल्पना को पसंद करते थे। आजमगढ़ प्रवास के दौरान उन्होंने सदैव ही आमजन को समाजवाद के प्रति प्रेरित किया। स्त्रियों के प्रति उनके मन में विशेष सम्मान था और शायद यही कारण था कि स्त्री किसी भी जाति व धर्म की हो उसे वे पिछड़ा मानते थे। आरक्षण में यदि लोहिया का सिद्धांत लागू हुआ होता तो शायद आज इतना विरोधाभास नहीं होता। डॉ. लोहिया के साथ आन्दोलन में हर कदम पर साथ रहे लोग आज भी उनके विचार को प्रासंगिक मानते हैं।
बता दें कि डॉ. लोहिया ने पहली बार 1946 में अतरौलिया के अतरैठ में सभा कर समाजवाद का बिगुल फूंका था। 1953 में विधानसभा उपचुनाव के दौरान वे एक सप्ताह तक जिले में रहे और सगड़ी विधानसभा क्षेत्र के प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी समाजवादी विचारक बाबू विश्राम राय के पक्ष में प्रचार किया। इस दौरान उनके साथ आचार्य नरेन्द्र देव, प्रो. मुकुट बिहारी लाल, जयप्रकाश नरायन, राजनरायन आदि भी मौजूद रहे।
राजनरायन ने रामगढ़ पोलिंग बूथ पर बतौर एजेंट कार्य भी किया। 1953 में ही भूमि आन्दोलन विश्राम राय के नेतृत्व में शुरू हुआ। इस दौरान डॉ. लोहिया ने जिले की सभी छह तहसीलों मधुबन से लेकर फूलपुर तक का दौरा किया। वर्ष 1962 में डॉ. लोहिया द्वारा मऊ के काजी बेला मैदान व 1967 में आजमगढ़ नगर की पुरानी सब्जी मंडी स्थित हाल में सभा की थी। अपने जीवन के दौरान डॉ. लोहिया ने लगभग 50 बार जनपद की यात्रा की। उनके साथ रहे लोगों के मुताबिक वे न पूर्ण मार्क्सवादी थे और ना ही गांधीवादी। वे भारतीय भाषाओं के समर्थक थे जबकि अंग्रेजी के प्रबल विरोधी। शायद यही कारण था कि उन्होंने यह नारा दिया कि चले देश में देशी भाषा डॉ. लोहिया की अभिलाषा।
वे समान शिक्षा के भी पक्षधर थे। वे चाहते थे कि बच्चे चाहे गरीब के हों अथवा अमीर के सबको समान शिक्षा का अधिकार मिले ताकि सामाजिक असमानता को मिटाया जा सके। आजादी के छह दशक बाद भी डॉ. लोहिया के सपने आज भी अधूरे हैं। प्रबुद्ध वर्ग उनके सिद्धांत की प्रासंगिकता को समझता है और यह चाहता है कि डॉ. लोहिया का विचार समाज के प्रत्येक व्यक्ति का विचार हो लेकिन वर्तमान समाज जिस तरह उद्देश्य एवं मूल्यों से भटका है लोगों को यह उम्मीद नहीं है कि यह संभव हो सकेगा।
हमारे लिए थे परिवार के सदस्यः सुधीर अग्रवाल
मातबरगंज मोहल्ला निवासी सुधीर अग्रवाल बताते हैं कि वे लोहिया जी से तो नहीं मिले लेकिन राजनरायण जी से उनकी मुलाकात हुई है। मेरे पिता ओंकार प्रसाद अग्रवाल लोहिया जी के अभिन्न मित्र थे। हमारा परिवार लोहिया जी को परिवार का सदस्य मानता था। ओंकार के बड़े भाई समाजवादी विचारक के साथ कलेक्ट्रेट में अधिवक्ता थे। डॉ. लोहिया जब भी आजमगढ़ आते थे इन्हीं के घर रुकते थे। जयप्रकाश नरायन और उनकी पत्नी लम्बे समय तक इनके घर के ऊपरी तल पर रहे। सुधीर बताते हैं कि पिता जी बताते थे कि पार्टी की नीति में जब भी कोई परिवर्तन करना होता था तो डॉ. लोहिया त्रिलोकीनाथ से बात करते थे। यह जानने का प्रयास करते थे कि परिवर्तन कितना उचित होगा अथवा अनुचित। 1960 के दशक में घोसी में सभा होनी थी। डॉ. लोहिया मेरे घर से निकले और तत्कालीन राजस्व मंत्री प्रभु नारायण सिंह ने कहा मेरे साथ चलो। उन्होंने दो टूक जवाब दिया मैं सरकारी गाड़ी से नहीं जाऊंगा बल्कि ओंकार के साथ जाऊंगा।
सुधीर बताते हैं कि उनके पिता ने एक बार बताया था कि उनकी उम्र काफी कम थी। पटना के सदाकत आश्रम में मीटिंग चल रही थी। जयप्रकाश जी की पत्नी ने उन्हें देख लिया और उन्होंने मंचासीन जयप्रकाश जी से यह बात बता दी। उन्होंने भरी सभा के बीच कहा कि मेरा छोटा भाई आजमगढ़ से आया है मेरे पास आओ। ऐसे तमाम संस्मरण आज भी ओंकार अग्रवाल के परिवार को यादव है जो उन्होंने बताया है। परिवार के लोगों को इस बात का अफसोस भी है कि लोहिया जी का सपना साकार नहीं हो सका।
यहां कराया एक्जिमा का उपचार
साठ के दशक में डॉ. लोहिया आजमगढ़ आये थे। उनके पैर में चोट लगी हुई थी। उस सयम वे ओंकार अग्रवाल के घर रुके थे और कहा था कि डॉ. बुलाकर पट्टी करा दो। ओंकार अस्पताल पहुंचे और कम्पाउंडर मो. अमीन को पट्टी बांधने के लिए बुलाया। यह बात जब मेडिकल अफसर डॉ. कैलाश गुप्ता को पता चली तो वे भी ओंकार के घर पहुंच गये। बात ही बात में पता चला कि डॉ. लोहिया को एक्जिमा है। डॉ. कैलाश ने उन्हें एक मरहम बनाकर दिया। जिससे एक्जिमा ठीक होने लगा फिर उन्होंने ओंकार को पत्र लिखा कि मरहम खत्म हो गया है। इसे फिर बनवाकर भेज दो।
जब असिस्टेंट को पड़ी डांट
ओंकार प्रसाद अग्रवाल के परिवार के लोग बताते है कि डॉ. लोहिया कन्नौज से एमपी चुने गये थे। ओंकार किसी काम से दिल्ली गये थे। उनसे मिलने की अभिलाषा लिये वे उनके आवास पर पहुंच गये। वहां उनकी असिस्टेंट रोमा मुखर्जी से कहा कि मैं डाक्टर साहब से मिलना चाहता हूं। रोमा ने कहा कि डाक्टर साहब घर पर नहीं है। यह बात डाक्टर साहब ने सुन ली और रोमा को बुलाकर बोले ओंकार को भीतर बुलाओ। जब ओंकार भीतर गए तो पूछा कब आये। उन्होंने जब बताया कि होटल में ठहरे है तो लोहिया जी गुस्सा हो गए और कहा क्या चाहते हो मैं आजमगढ़़ आऊं तो होटल में ठहरूं। उन्होंने तुरन्त एक आदमी भेज ओकार का सारा सामान अपने आवास पर मंगा लिया था और उन्हें लोकसभा और राज्यसभा घुमाने के बाद घर आने दिया। ओंकार अग्रवाल भले ही इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके परिवार ने लोहिया जी से जुड़ी तमाम यादों संजोकर आज भी रखा है।
BY Ran vijay singh